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ग़ज़ल, पथरीले रास्तों को गुलशन बनाने आओ । छोड़ों ये नर्म बिस्तर अब बोलना पड़ेगा ।।

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           ग़ज़ल

पानी है सर से ऊपर अब बोलना पड़ेगा ।
सब दूरियां मिटाकर अब बोलना पड़ेगा ।।

ऐसा न हो ख़मोशी तुमको तबाह कर दे ।
निकलो घरों से बाहर अब बोलना पड़ेगा ।।

अब वक़्त आ चुका है लफ़्ज़े दुरुस्त कर लो ।
शायद हमें बराबर अब बोलना पड़ेगा ।।

कुछ ऐसा मसअला है तुम भी कहोगे आखिर ।
कलतक तो चुप रहे पर अब बोलना पड़ेगा ।।

पथरीले रास्तों को गुलशन बनाने आओ ।
छोड़ों ये नर्म बिस्तर अब बोलना पड़ेगा ।।

तुम एक हो के बोलो हिन्दू हो चाहे मुस्लिम ।
बुग़्ज़ो हसद मिटाकर अब बोलना पड़ेगा ।।

तुम अपना अपना दरिया मौजों की नज़्म कर दो ।
खतरे में है समंदर अब बोलना पड़ेगा ।।

हम चुप रहे के शायद आ जाए अक़्ल लेकिन ।
ज़िद में है अब सितमगर अब बोलना पड़ेगा ।।

मक़्तल की फ़िक्र कैसी तेगों का ख़ौफ कैसा ।
चाहे सीना पा हो सर अब बोलना पड़ेगा ।।

इस शोर बे सबब में सच्चाइयों की खातिर ।
सच बात ये है अज़हर अब बोलना पड़ेगा ।।

                   शायर
जनाब एस.एम.अज़हर क़ासिम रिज़वी
अज़हर मोहानी साहब

 

 

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