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हमारे आपसी झगडे ने कोविड- 19 की नज़्र कर दिया मुहर्रम ,ताज़ियों पर सरकार करे विचार

ज़की भारतीय

कबतक चलेगा ये टुकड़े टुकड़े गैंग

लखनऊ, संवाददाता | वैसे तो हज़रत इमाम हुसैन अस का ग़म संपूर्ण संसार में बहुत अक़ीदत के साथ मनाया जाता है ये अलग बात है कि मुहर्रम मनाए जाने का तरीक़ा हर देश का अलग अलग होता है लेकिन संसार भर में लखनऊ को अज़ादारी का केंद्र कहा जाता है | 1838 में अवध के शिया बादशाह और नवाबों ने इसकी शुरुवात की थी | शायद इसीलिए यहाँ इसको शाही मुहर्रम कहा जाता है |
लखनऊ में जिस तरह मुहर्रम का इंतज़ाम होता है ,उस तरह का इंतज़ाम पूरी दुनिया में नहीं होता |
राजधानी लखनऊ में अवध के बादशाह मोहम्मद अली शाह के समय जो शाही जुलूसों की परंपरा स्थपित हुई थी वो आज भी चल रही है | इस बार कोरोना वायरस के कारण सरकार द्वारा जारी गाइडलाइन के बाद जहाँ कुछ शिया धर्म गुरुओं के मध्य एक दूसरे पर मुहर्रम को मनाए जाने का श्रेय को लेकर तनातनी जारी है तो वही शिया संप्रदाय में ताज़ियों को दफ़्न न किये जाने पर लगे प्रतिबन्ध को लेकर शिया संप्रदाय में भारी रोष व्याप्त है | सोशल मीडिया पर शिया संप्रदाय का रोष स्पष्ट रूप से पढ़ने को मिल रहा है | कहीं छतों से मातम किये जाने का ऐलान किया जा रहा है तो कहीं ताज़ियों को दफ़्न किये जाने की बात की जा रही है |
दरअस्ल कल संयुक्त पुलिस आयुक्त क़ानून व्ययवस्थ नवीनअरोड़ा ने जब बैठक शुरू की थी तो सूत्रों के हवाले से ये खबर आई थी की ताज़िये निकालें जाने पर सरकार द्वारा आज्ञा प्रदान कर दी जाएगी ,लेकिन प्रशासन ने अज़ादारों की इस उम्मीद पर भी पानी फेर दिया | विवाह समारोह और दाह संस्कार में 30 और 50 लोगों की अनुमति दिए जाने पर कई शिया युवकों का कहना है किजब अंतिम संस्कार में 30 लोग शामिल हो सकते हैं तो आखिर 5-10 लोग ताज़िये में क्यों नहीं शामिल हो सकते है ?
कल बाजार खाला एसीपी ने एम के मैरिज हाल में अमन शांति समिति की एक बैठक में कहा कि जैसा वो जानते हैं कि लखनऊ में 2 लाख ताज़िये दफ़्न किये जाते है और अगर एक ताज़िये के साथ 3 लोग भी शामिल हुए तो 6 लाख लोग इकठ्ठा हो जाएंगे | हालाँकि उनको दी गई जानकारी ग़लत है ,क्योंकि 10 मुहर्रम को हर शिया ताज़िया नहीं उठता है और जो ताज़िये अशरे यानि दस मुहर्रम को उठते है वो किसी एक कर्बला में दफ़्न नहीं किये जाते | अकेले लखनऊ में ही कर्बला इमदाद हुसैन खां ,कर्बला ज़ैनबिया ,कर्बला ताल कटोरा , कर्बला मलका जहाँ, पुत्तन साहिबा की कर्बला, अब्बास बाग़ की कर्बला , कर्बला मिस्री की बग़िया, इमाम बड़ा झाऊलाल , रौज़ा ए काज़मैन और कर्बला दियानतुद्दौला जैसी तमाम बारगाहे हैं | इसके अलावा मुहर्रम ,सफर और रबीउलअव्वल यानि 2 माह 8 दिन तक अज़ादार अपने घरों में शब्बेदारी करते हैं और सुबह ताज़िया उठाकर कर्बला ले जाते है | 68 दिनों तक ये सिलसिला जारी रहता है | यही नहीं हर क्षेत्र का अज़ादार अपने अपने क्षेत्र की कर्बला में अलग अलग समय पर ताज़िया दफ़्न करता है | इसलिए ताज़िये पर अंकुश लगाना ग़लत है और सरकार को इस प्रकरण पर विचार करना चाहिए | जिस तरह से सरकार को फीड किया गया है कि एक दिन और एक स्थान पर ही 6 लाख अज़ादार ताज़िया दफ़्न करते हैं ,सरासर ग़लत सूचना है |
एक ऑटो में 4 सवारी बैठ सकती है , दर्जनों ग़रीबों को एक स्थान पर राशन बाटा जा सकता है, सड़कों पर जैम लग सकता है ,विधान सभा सत्र हो सकता है ,बसों और ट्रेनों में यात्री सफर कर सकते है, शराब की दुकानों पर क़तारें लग सकती है , हॉस्पिटल में मरीज़ों की भीड़ लग सकती हैं शादी में 50 लोग शामिल हो सकते हैं ,किसी की मौत पर 30 लोग शिरकत कर सकते है ,अयोध्या में पूजा हो सकती है तो आखिर सोशल डिस्टेंसिंग के साथ घरों का ताज़िया क्यों नहीं निकल सकता ? ये ऐसे प्रश्न हैं जिनके उत्तर शिया समुदाय सरकार से माँगना चाह रही है | हालाँकि इन सभी बातों को सरकार या प्रशासन के सम्मुख शिया आलिमे दीन को रखना चाहिए था लेकिन जहाँ इधर एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए शिया मौलाना और ज़ाकिर अहलेबै के बीच आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला जारी है | तो वही दूसरी तरफ मुहर्रम के जुलुस, बड़े अजाखानों की मजालिस और हद है कि घरों के ताज़ियों पर भी प्रतिबन्ध लग गया | उल्माए कराम भले ही मुहर्रम पर खामोश हैं लेकिन शिया संप्रदाय में मुहर्रम को लेकर ज़बरदस्त आक्रोश व्याप्त है | कोई शिया पर्सनल लॉ बोर्ड को फ़र्ज़ी बता रहा है ,कोई किसी को कोरोना हो जाएगा कह रहा है तो कोई किसी ज़ाकिर को शेरवानी के 56 बटन नुचे होंगे ,की धमकी दे रहा है | यही नहीं जो पत्रकार सत्यता लिख रहा है उसे जूते से मारे जाने की धमकी भी मिल रही है |
दरअस्ल यहाँ हज़रत इमाम हुसैन अस के मुहर्रम को संपन्न करवाए जाने पर कम और आपसी मामलों को लेकर ज़बरदस्त जंग छिड़ी हुई है | ऐसे में सरकार भी समझ रही है कि शिया संप्रदाय की क़यादत कई भागों में विभाजित हो चुकी है | आपको याद होगा कि अज़ादारी की जुलूसों पर प्रतिबन्ध लगने की उपरान्त भी कभी घरों की ताज़ियों और बड़ी मजालिस पर प्रतिबन्ध नहीं लगा था लेकिन आपसी ग्रुप बंदी और क़ौम की नज़रों में खुद को अच्छा साबित करने की ज़िद ने आज शीयत को कहाँ लेकर खड़ा कर दिया |बहरहाल मैंने पत्रकार की हैसियत से जो सत्य है उसे उजागर किया ,यदि मेरे द्वारा लिखे गए इस लेख से किसी को तकलीफ हुई तो मुझे माफ़ करें |

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