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मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने किया सल्फर फ्री चीनी उत्पादन यूनिट का शुभारंभ

अली हसनैन आब्दी फ़ैज़

क्या है सल्फर फ्री शक्कर?

आमतौर पर घर में सफेद चीनी का ही इस्तेमाल किया जाता है, पर क्या आप यह जानते हैं कि कौन सी चीनी है आपके लिए बेस्ट? बताएंगे हम और आप जानें गुड (Good), बेटर (Better)और बेस्ट (Best)चीनी का फ़र्क़ |मार्केट में चीनी तीन तरह की पाई जाती है | सफेद चीनी (White Sugar), ब्राउन चीनी (Brown Sugar)और सल्फर फ्री चीनी (Sulphur Free Sugar) सफेद चीनी में कैलोरी बहुत ज्यादा पाई जाती है | इसे खाने से शरीर को नुकसान पहुंच सकता है| सफेद चीनी और भी महीन बनाने के लिए इसमें सल्फर मिलाया जाता है जिससे सांस की दिक्कत पैदा हो सकती है | जुबान को भाने वाली चीनी कई बार सेहत को नुकसान पहुंचाती थी। इसका तोड़ सल्फर फ्री चीनी से निकाला गया है ।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बुधवार को बस्ती के मुंडेरवा और गोरखपुर के पिपराइच चीनी मिल में स्थापित सल्फरमुक्त प्लांट का लोकार्पण किया । मुख्यमंत्री दोपहर 2.40 बजे गोरखपुर पहुंचे । दोपहर 3.30 बजे तक वह पिपराइच चीनी मिल के कार्यक्रम में शामिल रहे । फिर गोरखनाथ मंदिर पहुंचे ।

मुख्यमंत्री की यहाँ तीन दिन तक रहने की उम्मीद है। हालांकि जिला प्रशासन की तरफ से प्रोटोकॉल सिर्फ नौ दिसंबर के लिए ही जारी हुआ है। मुख्यमंत्री, यहां 10 दिसंबर से शुरू हो रहे पूर्वांचल के विकास पर आधारित वेबिनार-सह सेमिनार और महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद के संस्थापक समारोह के समापन मौके पर आयोजित कार्यक्रम में भी शामिल होंगे।

मुख्यमंत्री ने आज बुधवार को जहाँ पहले बस्ती के मुुंडेरवा चीनी मिल में सल्फरमुक्त प्लांट का लोकार्पण किया वहीँ उसके बाद पिपराइच चीनी मिल का भी प्लांट लोकार्पण किया । इन दोनों नई चीनी मिलों का मुख्यमंत्री ने गत वर्ष लोकार्पण किया था। उसी दौरान उन्होंने यह घोषणा की थी कि दोनों चीनी मिलों में सल्फरमुक्त चीनी का उत्पादन कर अच्छी गुणवत्ता की चीनी बनाई जाएगी।

बता दें कि मुंडेरवा एवं पिपराइच चीनी मिलों में स्थापित सल्फरमुक्त प्लांट की स्थापना सरकारी चीनी मिलों में पहली बार शासन से प्राप्त वित्तीय सहायता द्वारा की गई है। यह परियोजना समय से पूरी कर पेराई सत्र 2020- 21 का शुभारंभ सल्फरमुक्त चीनी के उत्पादन के साथ ही किया जा रहा है।
राज्य सरकार ने यूपी स्टेट शुगर कॉर्पोरेशन लिमिटेड की 2 चीनी मिलों के सल्फर-लेस प्लांट्स को वित्तपोषित किया है। 65 लाख क्विंटल के पेराई के संयुक्त लक्ष्य के साथ, इन दो चीनी मिलों में प्रत्येक की क्विंटल क्षमता 50,000 क्विंटल है।
कानपुर स्थित नेशनल शुगर इंस्टीट्यूट ने बड़ी उपलब्धि हासिल की है। यहां ऐसी तकनीक इजाद की गई है जिससे सल्फर रहित चीनी का उत्पादन किया जा सकेगा। स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह सल्फर के स्थान पर अब डिस्टिलरियों से उत्सर्जित कार्बन-डाई-ऑक्साइड का इस्तेमाल किया जाएगा। इसके बाद विदेशों में भी भारतीय चीनी मिलों की चीनी प्रतिबंधित नहीं रहेगी।

अभी जो मौजूदा तकनीक है उसमें गन्ने के रस को साफ करने के लिए चूने के साथ ही सल्फर डाई ऑक्साइड का इस्तेमाल किया जाता है। चीनी बनने के बाद भी सल्फर का कुछ अंश इसमें रह जाता है, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। यही वजह है कि विदेशों में सल्फरयुक्त चीनी पूर्ण रूप से प्रतिबंधित है। वहां दो बार शोधित कर रिफाइंड चीनी उपयोग में लाई जाती है, जिसकी प्रक्रिया जटिल है और महंगी भी है। वहीं, भारत में 70 पीपीएम (पार्ट पर मिलियन) सल्फर डाई ऑक्साइड को भारतीय मानक ब्यूरो ने मजबूरी में मान्य कर रखा है। इन परिस्थितियों को देखते हुए देश के इकलौते राष्ट्रीय शर्करा संस्थान में सल्फर से निजात पाने को प्रयास शुरू हुए। दो साल पहले इस पर शुगरकेन टेक्नोलॉजी के प्रोफेसर डॉ. आशुतोष वाजपेयी ने शोध शुरू किया, जिसमें उन्हें सफलता मिल गई है।

डॉ. वाजपेयी ने बताया कि अधिकांश चीनी मिलों के साथ शराब की डिस्टिलरी चल रही हैं। डिस्टिलरी से कार्बन-डाई-ऑक्साइड का उत्सर्जन लगातार होता रहता है। नई तकनीक के मुताबिक अब उस कार्बन-डाई-ऑक्साइड को चूने के साथ गन्ने का रस साफ करने में इस्तेमाल किया जाएगा। चूंकि कार्बन हमारे शरीर में भी होता है और चीनी में कार्बन की कुछ मात्रा ही रह जाएगी, जो स्वास्थ्य के लिए कतई हानिकारक नहीं होगी।

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