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मन्दिर निर्माण प्रकरण पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के विरुद्ध क्या दायर होना चाहिए पुनर्विचार याचिका?

मसलमानों को 5 एकड़ भूमि दिया जाना क्या पुनर्विचार याचिका का है मुख्य कारण?

ज़की भारतीय

लखनऊ,29 नवम्बर । अयोध्या प्रकरण पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से अधिकतर मुस्लिम संतुष्ट नहीं दिखाई दे रहे हैं। हालांकि ये भी सत्य है कि इस प्रकरण से जुड़े ज़िम्मेदार सर्वोच्च न्यायालय में पुनर्विचार याचिका दायर करने के पक्ष में नहीं हैं। लेकिन समझ से परे है कि पुनर्विचार याचिका दायर करने वालों को किस कारणवंश राजनीतिक रोटियां सेकने वाला या और किसी प्रकार की टिप्पड़ी से नवाज़ा जा रहा है। आजकल जहां समाचार पत्रों की सुर्खियों में असदुद्दीन ओवैसी,मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और जमीयत उलमा-ए-हिन्द के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी छाए हुए हैं तो वहीं दूसरी तरफ सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड,मुस्लिम कार सेवक मंच के अघ्यक्ष कुंवर मौहम्मद आज़म खान और राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष गयूरुल हसन रिज़वी भी अपने बयानों से चर्चा में हैं।
बाबरी मस्जिद बनाम रामजन्म भूमि प्रकरण के फ़ैसले के बाद कुछ मुस्लिम संघटनों ने माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश से नाराज़गी दिखाई थी।
जिसमे असदउद्दीन ओवैसी और ज़फरयाब जीलानी सहित मौलाना अरशद मदनी प्रमुख रूप से शामिल हैं। जब्कि खास बात ये है,किसी भी हिन्दू संघटन ने अभी तक पुनर्विचार याचिका दायर किये जाने के विरोध में कोई भी बयान जारी नहीं किया है।
अभी तक सिर्फ मुसलमान ही मुसलमान के विरुद्ध बयान जारी कर रहा है।
इस मामले पर राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के चेयरमैन गयुरूल हसन रिज़वी ने अभी हाल ही में उन लोगों पर सख़्त ज़बानी प्रहार करते हुए कहा था कि पुनर्विचार याचिका मुसलमानों के हक़ में नहीं है। इससे हिन्दू औऱ मुसलमानों के बीच एकता को नुकसान पहुचेगा।रिज़वी के अनुसार पुनर्विचार याचिका दायर करने से हिन्दुओं को ऐसा लगेगा कि राम मन्दिर निर्माण में रोड़ा अटकाया जा रहा है। उन्होंने मुसलमानों से अपील भी की थी कि मुसलमानों को मन्दिर निर्माण में सहयोग भी करना चाहिए।
उनकी इस बात से साबित है कि मुसलमानों का एक बड़ा तबक़ा मन्दिर निर्माण में सहयोग नहीं कर रहा है।
पुनर्विचार याचिका दायर करने की बात कहने वालों पर कुछ मुसलमानों का ये भी कहना है कि सौ प्रतिशत पुनर्विचार याचिका खारिज होने की आशा है। ऐसे यक़ीन के बावजूद आखिर ये मुसलमान पुनर्विचार याचिका करने वालों को राजनीतिक रोटियां सेंकने वाले की डिग्री क्यों बाट रहे हैं।
मुस्लिम कारसेवक मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष आज़म खान ने अपने दिए बयान में कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की पुनर्विचार याचिका राजनीति के सिवा और कुछ नहीं। उन्होंने ओवैसी के बारे में कहां कि उनकी राजनीति सुप्रीम कोर्ट के फैसले आने के बाद समाप्त हो गई।उन्होंने ये भी कहा कि वो पुनर्विचार याचिका दायर करके अपनी राजनीति ज़िन्दा रखना चाहते हैं।उन्होंने भी कहा कि ये याचिका ख़ारिज हो जाएगी।
अब सवाल ये पैदा होता है कि जब पुनर्विचार याचिका ख़ारिज ही हो जाएगी तो फिर पुनर्विचार याचिका दायर करने वालों का विरोध क्यों ?
कहीं ऐसा तो नहीं कि पुनर्विचार याचिका को सुप्रीम कोर्ट स्वीकार कर ले और मन्दिर निर्माण मुद्दा फिर से अधर में लटक जाए ?
यहां पर एक बात तो अवश्य समझना ज़रूरी है कि जो सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया उसमे ऐसी कौन सी बात मुसलमानों के गले से नीचे नहीं उतरी जो अभी तक इस समाप्त प्रकरण पर चर्चाएं तेज़ हो गई हैं।ये बताना आपको अब ज़रूरी नहीं है,क्योंकि सुप्रीम कोर्ट का आदेश सभी के दृष्टिगत है और मुझे अपनी आज़ादी का दायरा भी ज्ञात है।
हाँ ये ज़रूर कहना चाहूंगा कि जो मुसलमान पुनर्विचार याचिका दायर करने वालों पर उलटे सीधे आरोप लगा रहे हैं ,दरअसल ये आरोप नहीं बल्कि उनको आक्रोशित किया जा रहा है,चिढ़ाया जा रहा है कि वो पुनर्विचार याचिका दायर कर दें।
जिससे ये प्रकरण लम्बित हो जाए।
देशहित में इस प्रकरण पर शांति बनाए रखना चाहिए। जिस तरह हिन्दू संप्रदाय बनाए हुए है।अभी तक पुनर्विचार याचिका के विरुद्ध एक हिन्दू बच्चे नें भी बयान जारी नहीं किया।ये अपने मे सराहनीय है।
राम मन्दिर प्रकरण वो है जिससे सपा और भाजपा को राजनीतिक लाभ हुआ था ,लेकिन बावजूद इसके भाजपा ने संयम के साथ विवादित स्थल का हल सुप्रीम कोर्ट द्वारा होने पर मोहर लगाई और इस प्रकरण पर विधेयक नहीं लाई, जब्कि पूर्ण बहुमत में केंद्र सरकार थी ।
अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के विरुद्ध यदि कोई पुनर्विचार याचिका दायर करना चाह रहा है,वो न्याय पालिका के आदेश से संतुष्ट नहीं है ,तो आखिर किसी को क्यों बेचैनी है ?
अगर पुनर्विचार याचिका दायर होती है और सुप्रीम कोर्ट स्वीकार करती है तो न्यायपालिका के विरुद्ध भविष्य में कभी मुसलमानों की तारीख़ में ये बात लिखने वाला कोई नहीं होगा, उसको न्यायपालिका से न्याय नहीं मिला।जिसका इतिहास गवाह रहेगा। फिर कोई ये भी पूछने वाला नहीं होगा कि, जब मस्जिद नहीं थी तो न्यायपालिका नें मस्जिद के लिए 5 एकड़ भूमि क्यों दी थी।

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