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भाजपा की हार पर समीक्षा बैठक या “दिल को बहलाने का ग़ालिब, ये ख्याल अच्छा हैं”

मोदी जी की घोषणाएं धरती पर नहीं रख सकी क़दम

लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की हो सकती है केंद्र में धमाकेदार इंट्री

(ज़की भारतीय)

लखनऊ, 13 दिसम्बर | पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा को मिली करारी शिकस्त के बाद , भाजपा के शीर्ष नेता आज दिल्ली में स्थित भाजपा कार्यालय में समीक्षा बैठक के लिए जमा हो चुके हैं | भाजपा ही नहीं, जब भी कोई राजनीतिक दल चुनाव में हारता हैं, तो वो अपनी हार की वजह तलाशने के लिए समीक्षा बैठक ज़रूर करता है |

ये पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव तो भाजपा के लिए एक रिहर्सल के तौर पर थे, लेकिन यहाँ भाजपा की हार से, भाजपा को खुद एक बड़ा सबक़ मिल गया है | ज़ाहिर हैं लोकसभा चुनाव सर पर है और भाजपा की लोकप्रियता की हवा में इन विधानसभा चुनाव ने हार का ज़हर घोल दिया है | इस खौफ से उबरने के लिए पार्टी को समीक्षा बैठक तो करना ही थी | सवाल ये उठता है कि भाजपा को आत्ममंथन इस बात पर करना चाहिए या नहीं कि वो किस तरह से लोकप्रिय हुई थी | मोदी भाजपा के पहले प्रधानमंत्री नहीं हैं जो भाजपा को विजयी रथ पर बैठालकर सत्ता में आये हैं | याद रहे इसके पूर्व भी भाजपा दो बार केंद्र में सत्ता बना चुकी हैं | ये अलग बात हैं कि मोदी के क्रेज़ ने इस बार भाजपा को प्रचंड बहुमत हासिल कराया हैं | जिसके लिए मोदी का जादुई भाषण सबसे सर्वोपरि हैं, लेकिन जनता का विश्वास सिर्फ बड़े-बड़े वादे करके उनको पूरा ना करने से नहीं जीता जा सकता हैं | इसमें कोई दो राय नहीं कि इस समय नरेंद्र मोदी से अच्छा वक्ता कोई भी नहीं हैं | लेकिन जनता को खाने के लिए रोटी, रोजग़ार, सरकारी नौकरियां, न्याय और इलाज के लिए निशुल्क अस्पतालों की ज़रूरत होती हैं, ना की किसी के बेहरतरीन सम्बोधन की | जनता से किये गए वादे पर खरे ना उतरने के कारण जनता का भाजपा से मोहभंग होता जा रहा हैं | यही नहीं भाजपा की हार की तस्वीर के दूसरे पहलु अगर देखा जाये तो भाजपा का वो नारा “रामलला हम आएंगे, मंदिर वही बनाएंगे” जो भाजपा को लोकप्रियता के साथ सरकार में लाया था, भाजपा उस नारे को ही भूल गई और “सबका साथ, सबका विकास” का नारा बलन्द कर दिया | जहाँ तक मै समझता हूँ कि संघ प्रमुख मोहन भगवत ने भाजपा को राममंदिर निर्माण मामले में तलब करके भाजपा को फिर एक बार सत्ता में लाने का भरसक प्रयास किया था | लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्धारा मंदिर मुद्दे के मामले पर ख़ामोशी के बाद अयोध्या में राममंदिर निर्माण का मामला साधु-संतों और विश्व हिन्दू परिषद द्धारा उठवाया गया | इस मुद्दे को उठवाने के बाद प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ ने जो बयान दिया था वो अपने आप में आश्चर्यचकित कर देने वाला था | बताते चलें कि योगी ने कहा था कि अगर ये मुद्दा मेरे हाथ में होता तो 24 घंटे में राममंदिर निर्माण मामला हल कर देते | उनके इस बयान का क्या मतलब निकाला जा सकता हैं ये तो वो खुद ही जानें, लेकिन इस बयान का अर्थ लोगों ने शायद कुछ और भी निकाला हो | भाजपा की सरकार के सिक्के के दोनों पहलु खोटे निकले हैं | ना जनता से किये गए मोदी द्धारा वादे ही पुरे हो सके और ना ही मंदिर मामले पर भाजपा खरी उतर सकी | अब आने वाले लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा जितनी भी समीक्षा बैठक करे, लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी उर्फ़ पप्पू ने भाजपा को ये बता दिया हैं कि वो पप्पू अब पप्पू नहीं रहा जिसे भाजपा ने पप्पू की उपाधि दी थी | ऐसे समय में जब जनता भाजपा का विकल्प ढूंढ रही थी तो पप्पू ने कांग्रेस का विकल्प जनता के सामने लाकर रख दिया हैं |

लोकसभा चुनाव में भले ही अब क्षेत्रीय दल कांग्रेस से गठबंधन ना करें, बावजूद इसके लोकसभा चुनाव में भाजपा को पुनः सरकार बनाने के लिए अयोध्या में राममंदिर का निर्माण करना पड़ेगा, वरना 2019 में केंद्र में भाजपा सरकार के स्थान पर कांग्रेस विराजमान होगी | कारण ये हैं कि जहाँ एक तरफ मुस्लमान भाजपा को हराने के लिए लामबंद हो जायेगा तो वही भाजपा से नाराज़ हिन्दू भी भाजपा को करारा जवाब देने के लिए कांग्रेस को वोट करेगा | ऐसी स्थिति में भाजपा इतना पिछड़ जाएगी कि उसको सत्ता में वापसी के लिए कोई रास्ता नहीं मिलेगा | आज भाजपा को जिस स्थान पर देखा जा रहा हैं वो संघ की वर्षों पुरानी मेहनत का नतीजा हैं | आज भी संघ अगर चाहे तो विश्व हिन्दू परिषद को इतना उठा सकती हैं कि आने वाले समय में केंद्र में विश्व हिन्दू परिषद की सरकार नज़र आये | अगर भाजपा संघ के बताये रास्तों पर नहीं चलेगी तो मुमकिन ही नहीं कि 2019 में भाजपा की लोकसभा चुनाव के बाद सरकार बन सके |
हालाँकि ये भी सच हैं कि राममंदिर प्रकरण शीर्ष अदालत लंबित हैं| बावजूद इसके भाजपा के ही लोग शीतकालीन सत्र में राममंदिर निर्माण पर क़ानून लाये जानें की मांग कर रहे हैं |

हालांकि राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में करीब 13 लाख मतदाताओं ने नोटा को विकल्प के रूप में आजमाया। इनमें से ज्यादातर भाजपा समर्थक मतदाता थे। पार्टी सूत्रों की माने तो उनका कहना है कि अगर नोटा का इस्तेमाल कम होता तो निश्चित रूप से न सिर्फ मध्यप्रदेश की सरकार बचती, बल्कि राजस्थान और छत्तीसगढ़ में मध्यप्रदेश की तरह ही कांटे का मुकाबला होता। पार्टी सूत्रों की बात किसी हद तक सही भी हैं लेकिन, “दिल को बहलाने का ग़ालिब, ये ख्याल अच्छा हैं” क्योकि अब कारण कोई भी हो लेकिन भाजपा सत्ता से मीलों दूर हो चुकी हैं | भाजपा को अब 2019 लोकसभा चुनाव में सरकार बानाने के लिए आत्ममंथन करना होगा | उसे जहाँ जनता से किये वादों को पूरा करना होगा, वही उसे राममंदिर निर्माण के प्रति भी गंभीरता से कोई विकल्प ढूँढना पड़ेगा | और चुनाव से पूर्व ये सब संभव नहीं हैं | मोदी जी का जादुई भाषण इस बार काम आने वाला नहीं हैं | क्योकि निर्धन लोगों को जनधन योजना के तहत अपने खातों में धन आने की इतनी सम्भावना थी कि जब भी नरेंद्र मोदी कोई घोषणा करने वाले होते थे, तो लोग टीवी चैनलों के सामने मोदी का एक-एक शब्द बहुत गौर से सुनते थे लेकिन जब आखिर में मोदी की तरफ से जनधन खातों का कोई उल्लेख नहीं होता था, तब निर्धन लोगों के चेहरे पर उदासी स्पष्ट रूप से नज़र आती थी | जीएसटी, नोटबंदी जैसे मामले तो जनता ने झेल लिए लेकिन आज भी जनता का कहना हैं कि मोदी सरकार ने हम लोगों का जीना दुश्वार कर दिया हैं | हैरत तो ये हैं कि आज अपने ही धन को बैंक से निकालने के लिए लोग एक मुश्त अपनी ज़रूरत के अनुसार पैसा भी नहीं निकाल सकते | पैट्रोल-डीजल जैसे इस तरह के तमाम मामले ऐसे हैं जो जनता से सीधे जुड़े हुए हैं, और इन्ही कारणों से भाजपा लोगों के दिलों से निकलती जा रही हैं |

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