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तलाक़,तलाक़,तलाक़ पर क्यों हो रही है सियासत, राज्यसभा में ये बिल होना चाहिए पारित ?

तीन बार तलाक़ कहने से नहीं होती है तलाक़ , तो पति के लिए सज़ा क्यों ?

ज़की भारतीय

लखनऊ (सवांददाता) तीन तलाक़ मामले पर बेवजह की राजनीति और क़ानून बनाये जाने पर सरकार जाने क्यों ज़िद पर आमादा हो चुकी है | तीन तलाक़ मामले पर पति को सजा का प्राविधान या जुर्माना जैसे क़ानून लाये जाने पर आखिर क्या तीन तलाक़ का प्रकरण हल हो जायेगा ? यदि नहीं तो आखिर सरकार तीन तलाक़ मामले पर क्यों परेशान नज़र आ रही है | सरकार को चाहिए तीन तलाक़ के मामले पर राज्यसभा में वो बिल लेकर आये जिससे किसी भी भाजपा विरोधी दल को विरोध करने का अवसर प्राप्त न हो सके | राज्यसभा में आज तीन तलाक संबंधी चर्चित विधेयक पर चर्चा फिर से नहीं हो सकी। कांग्रेस के नेतृत्व में लगभग समूचे विपक्ष ने इसे प्रवर समिति में भेजने की मांग की, वहीं सरकार ने आरोप लगाया कि विपक्ष मुस्लिम महिलाओं के अधिकार से जुड़े इस विधेयक को जानबूझकर लटकाना चाहता है। दोनों पक्षों के अपने-अपने रुख पर कायम रहने के कारण इस पर चर्चा नहीं हो सकी और हंगामे के कारण कार्यवाही दो बार के स्थगन के बाद दोपहर करीब ढाई बजे पूरे दिन के लिए स्थगित कर दी गई।

एक तरफ भाजपा जहाँ तलाक़ मामले पर मुस्लिम महिलाओं से हमदर्दी प्राप्त करना चाहती है तो वही दूसरी तरफ शरीयत के बचाव में आकर भाजपा विरोधी दल मुस्लिम समुदाय से हमदर्दी हासिल करने की कोशिश में हैं| लेकिन सत्यता तो ये हैं कि कोई भी दल किसी का हमदर्द नहीं है, क्योकि मुख्य मुद्दा ये है कि तीन तलाक़ पर अगर कोई क़ानून लाने का प्रयास करना चाहता है तो उसे चाहिए तीन बार तलाक़ कह देने से तलाक़ नहीं हो सकती | अगर कोई पति अपनी पत्नि को तीन बार ही नहीं बल्कि तीन सौ बार तलाक़,तलाक़,तलाक़ कह दे तब भी तलाक़ नहीं हो सकती | इस तीन तलाक़ पर क़ानून लाना चाहिए, ना कि बेवजह के क़ानून लाकर जहाँ भाजपा अपने विरोधियों को विरोध करने का अवसर प्रदान कर रही है, वही तलाक़ के मामले पर सज़ा का प्रावधान भी बेसिर पैर का है | क्योकि मुस्लिम समुदाय के हर वर्ग में ट्रिपल तलाक़ का क़ानून नहीं है | इसलिए जिस तरह मुस्लिम समुदाय के अन्य वर्गों में तलाक़ का प्राविधान है, ठीक उसी तरह तलाक़ का क़ानून उस समुदाय के लिए भी बनाया जाये जहाँ तीन बार तलाक़ कह देने से तलाक़ हो जाती है | अब ज़ाहिर है कि जब तीन बार तलाक़ कह देने से तलाक़ होना ही नहीं है तो पति के विरुद्ध क़ानूनी कार्रवाई क्यों ? लेकिन ना तो इस मुद्दे को भाजपा उठा रही है और ना ही भाजपा विरोधी दल | अगर तीन तलाक़ पर पति को सज़ा देने का प्राविधान लागू किया गया तो, शायद पत्नियों के साथ पति अत्याचार करना शुरू कर देंगे | कोई पति अपनी पत्नि के चरित्र को लेकर थाने और चौकी पर खड़ा होगा तो कोई पति अपनी पत्नि के विरुद्ध किसी और तरह का लांछन लगा कर पुलिस द्धारा एफआईआर दर्ज कराएगा | ऐसी स्थिति में पत्नियां अपने पतियों के आक्रोश का शिकार होती रहेंगी | इसलिए तीन तलाक़ का जहाँ प्राविधान ख़त्म किया जाये, वहीँ तीन तलाक़ देने वाले पति के विरुद्ध सज़ा का प्राविधान भी ख़त्म किया जाना ज़रूरी है | इससे मुस्लिम समुदाय के अन्य लोगों की तरह वो लोग भी अपनी पत्नि को तलाक़ दे सकेंगे जो अभी तीन तलाक़ कह कर अपनी पत्नि से रिश्ता तोड़ लेते है | और जब यही पति-पत्नि पुनः विवाह करना चाहते है तो उनको हलाला जैसी कुप्रथा से गुज़ारना पड़ता है | इसीलिए तलाक़ के लिए मुस्लिम समुदाय के अन्य वर्गों में तलाक़ का सिस्टम हिन्दू धर्म के अनुसार ही है | यही नहीं न्यायालय द्धारा भी पति-पत्नि की तलाक़ का तरीका भी लम्बा होता है | वैसे तो तलाक़ का प्रकरण एक लम्बा प्रकरण है, इसमें काज़ी / धर्मगुरु को लड़की या लड़के की ओर से प्रार्थना पत्र दिया जाता है जिसमे तलाक़ लेने सम्बन्धी प्रकरण लिखा जाता है | इस प्रार्थना पत्र के प्राप्त होने के बाद काज़ी / धर्मगुरु पीड़ित की ओर से पति या पत्नि को नोटिस जारी करता है और उस पर लगाए गए आरोपों का उल्लेख करते हुए उसे जवाब देही के लिए समय सीमा देकर अपने यहाँ तलब करता है | फिर आरोपित अपनी सफाई में काज़ी / धर्मगुरु को जाकर पूरी बात बताता है | यही नहीं दुबारा पति-पत्नि और दोनों के परिजनों को बुलाकर आमना-सामना कराया जाता है, और दोनों पक्षों को सुना जाता है | जब किसी समझौते का कोई रास्ता नहीं निकलता है तो पति-पत्नि को एकांत में छोड़कर काज़ी / धर्मगुरु थोड़ी देर के लिए या तो खुद हट जाता है या फिर दोनों को अलग भेज देता है | इसी तरह से कई महीने तक समझौते के लिए प्रयास जारी रहता है | जब दोनों किसी भी हाल में एक दूसरे के साथ रहने को तैयार नहीं होते है तब कहीं जाकर तलाक़ कराई जाती है | इसलिए इसी तरह से सरकार को चाहिए कि वो राज्यसभा में इस तरह का क़ानून पारित कराये कि तीन बार तलाक़ कहने से तलाक़ नहीं हो सकती और ना ही तलाक़,तलाक़,तलाक़ कहने वाले पति को सज़ा हो सकती है | अगर सरकार ये क़ानून पारित कराये तो उम्मीद है, कि कोई भी दल इसका विरोध नहीं करेगा |

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