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जैसे असहाब मुझे मिले न मेरे नाना को मिले न मेरे बाबा को मिले : हज़रत इमाम हुसैन (अ.स)

लखनऊ (संवाददाता) राजधानी लखनऊ में आज आठवीं मुहर्रम के मौके पर मुख्तलिफ बारगाहों में मजलिसें संपन्न हुईं |इमामबाड़ा ग़ुफ़रामाब में जारी अशरे की आठवीं मजलिस को मौलाना सय्यद कल्बे जव्वाद नक़वी ने ख़िताब करते हुए हज़रत अब्बास अस की फ़ज़ीलत का ज़िक्र किया और आखिर में हज़रत अब्बास अस की शहादत का ज़िक्र किया ,जिसे सुनकर अज़ादार रोने लगे |मजलिस के बाद शबीहे ताबूते हज़रत अब्बास अस बरामद हुआ |
इमामबाड़ा आग़ाबाक़िर में आज आठवीं मजलिस को खिताब करते हुए मौलाना मीसम ज़ैदी ने भी हज़रत अब्बास अस की फ़ज़ीलत का ज़िक्र किया ,उन्होंने कहा कि हज़रत अब्बास इतने शुजा और बहादर थे कि जब वो नहरे फरात पर पहुंचे तो लाखों का लश्कर उनको देखकर इस तरह भागा जैसे मानों घाट पर कोई था ही नहीं |उन्होंने कहा कि अगर हज़रत अब्बास अस को जंग करने की इजाज़त मिल जाती तो 9 लाख का यज़ीदी लश्कर एक तरफ होता और अब्बास अकेले जंग फतह कर लेते ,इसीलिए हज़रत इमाम हुसैन अस ने अपने भाई हज़रत अब्बास को जंग की इजाज़त नहीं दी |क्योंकि जब हज़रत अब्बास टूटा हुआ नैज़ा लेकर लाखों के लश्कर पर भारी थे तो अगर जंग करने जाते तो फिर एक भी यज़ीदी सिपाही बचा न होता | उन्होंने कहा की हज़रत इमाम हुसैन के सिर्फ ये भाई ही नहीं बल्कि उनके सभी 71 साथी उन पर जान देने वाले थे | तभी हज़रत इमाम हुसैन अस ने कहा था की जैसे असहाब मुझे मिले वैसे न तो मेरे नाना को मिले और न ही मेरे बाबा को |
आखिर में उन्होंने हज़रत अब्बास अस की शहादत का मंज़र पेश किया | अक़ीदतमं जिसे सुनकर रोने लगे और ताबूत के बरामद होते ही या सकीना-या अब्बास की सदाएं बलन्द होने लगीं और मातमदारों ने छुरी और कमा का मातम करके अपने लहू से कर्बला वालों को नज़राना पेश किया |

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