HomeCITYजानिए, कोटेदारों को कालाबाज़ारी करने पर कौन करता है मजबूर ?

जानिए, कोटेदारों को कालाबाज़ारी करने पर कौन करता है मजबूर ?

ज़की भारतीय

नीचे से ऊपर तक बिछा है भ्रष्टाचार का जाल

लखनऊ ,03 जून | लॉकडाउन में सरकार द्वारा गरीबों को राशन मुहैय्या कराए जाने के दौरान कोटेदारों द्वारा घटतौली की खबर को निरंतर लिखने के उपरान्त आज कोटेदारों के पक्ष में भी उन कटु सत्यों
को उजागर करने का मन है जिसे न लिखना निष्पक्ष पत्रकारिता को कलंकित कर देगा |अगर कोटेदार राशन कम देते हैं, तो उसके पीछे सरकार की कमियां भी उजागर होती है | क्योंकि कोटेदारों को जब गोदामों से राशन कम मिलेगा तो वो आखिर वितरित किये जाने वाला राशन क्या अपनी जेब से खरीदकर उपभोक्ताओं को बांटेगा ? नहीं किसी भी हाल में नहीं | कोटेदार भी अपने परिवार के पालन पोषण के लिए पूरे परिश्रम के साथ अपने कर्तव्य का निर्वाहन करता है ,वो भी चाहता है कि उसके परिवार का पालन पोषण ठीक तरह से हो ,उसके बच्चे अच्छे स्कूल या कॉलेज में पढ़ सकें ,लेकिन ऐसा इसलिए संभव नहीं हो रहा क्योंकि सरकार ने जो कोटेदारों को कमीशन दिए जाने का प्रतिशत निर्धारित किया है, उसकी बदौलत कोई अपना परिवार नहीं चला सकता | एक तो गोदामों के कर्मचारियों की मनमानी ,दूसरे क्षेत्रीय खाद अधिकारियो ,डिप्टी सप्लाई अधिकारी सहित अन्य अधिकारीयों तक पहुंचने वाली टीजी यानि रिश्वत ,दुकान का किराया,बिजली का बिल ,पल्लेदार का वेतन आदि का कांधों पर बोझ ,इन सबके साथ साथ कोटेदार ईमानदारी से दो क़दम नहीं चल सकता |
कोटेदारों का प्रति कुंतल विक्रय कमीशन बढ़ाया जाए , रिश्वत / टीजी पूरी तरह से बंद हो ,गोदाम के हालात ठीक किये जाएं और ख़ासतौर से मिटटी के तेल का वितरण सरकार सीधे अपने हाथ में लें ,क्योंकि मिटटी के तेल गोदाम स्वामी तेल को जबरन बेचे जाने का दबाव बनाते है और अधिकतर कोटेदारों को अपना तेल गोदाम वालों के हाथों ही गोदाम स्वामियों के रेट पर बेचना पड़ जाता है ,जिसका स्पष्ट उदाहरण ये है कि जब कोटेदार तेल की बिक्री एक दिन में दिखाता है तो आखिर अनाज की एक दिन में क्यों नहीं दिखता है ? क्या उपभोक्ता एक दिन में लाइन लगकर सिर्फ मिटटी का तेल लेते हैं और फिर कुछ दिनों बाद वो राशन खरीदते हैं ? ये वो कटु सत्य है जिसे कोटेदार प्रति माह अपने हाथ से लिखकर क्षेत्रीय खाद अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत करता है | ये अलग बात है कि मिटटी के तेल का आवंटन अब कोटेदारों के लिए उतना नहीं रह गया लेकिन मिटटी के तेल की कालाबाज़ारी जमकर होती थी और हो रही है | ये सारे भ्रष्टचार सरकार की गलत योजना और भ्रष्ट अधिकारीयों को ढील दिए जाने का अंजाम है |

कोटेदारों को गोदाम से मिलता है दो प्रकार से खाद्यान्न

कोटेदारों को गोदाम से दो तरीके से राशन दिया जाता है, पहला तौल के और दूसरा तौल का औसत निकालकर। जो कोटेदार राशन तौलकर लेता है, उसे सबसे खराब खाद्यान्न और वह भी फटे बोरे में दिया जाता है। फटा बोरा मिलने से कोटेदार का बीस रुपये का नुकसान होता है। इसके बाद खाद्यान्न को वाहन में लादने का चार रुपये प्रति क्विंटल का रेट तय है लेकिन इसके लिए छह से आठ रुपए वसूले जाते हैं। इससे कोटेदारों को नुकसान होता है, जिससे वह भी राशन कम तौलते हैं। सरकार को इस तरफ भी ध्यान देने की ज़रूरत है | यदि सरकारी गोदामों से कोटेदारों को राशन तौलकर ही दिया जाए तो कोटेदारों को शायद इतनी चोरी नहीं करना पड़े | खाद्य एवं रसद विभाग को चाहिए कि वो गोदामों से मिलने वाले राशन को बगैर तौले हुए कोटेदारों को न दिए जाने की हिदायत दे | गोदाम पर पांच टन के कांटे लगे रहते हैं जिससे आसानी से तौल की जा सकती है। हालाँकि गोदाम इंचार्ज इसमें भी ये कह के इस मामले को टाल देंगे कि सैकड़ों कोटेदारों को दस दिनों के भीतर कैसे तौलकर राशन दिया जा सकता है। हालाँकि इस प्रकार के हथकंडे गोदाम कर्मचारी इसलिए निकालेंगे ,क्योंकि उनकी प्रति माह लाखों रूपए की होने वाली अवैध कमाई बंद हो जाएगी | कोटेदारों द्वारा कार्ड धारकों को पर्ची नहीं देने के मुद्दे का प्रकरण भी उठाया जाता है ,लेकिन इसकी भी सत्यता ये है कि रोल कोटेदारों को खरीदना पड़ता है, इसलिए वह पर्ची नहीं देते हैं |

 

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