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क्या वेब आधारित डिजिटल मीडिया पर गिर सकती है सुप्रीम कोर्ट के आदेश की गाज ?

लखनऊ,संवाददाता | सुदर्शन टीवी के विवादित शो को देखने से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर ये साबित कर दिया कि सुदर्शन टीवी का ये शो देखने के क़ाबिल ही नहीं है | बावजूद इसके केंद्र ने उच्चतम न्यायालय से कहा है कि प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया अपने काम के तरीके की वजह से बहुत ही कम सीमा लांघते हैं, लेकिन डिजिटल मीडिया पूरी तरह अनियंत्रित है।
सरकार की ओर से कहा गया कि अगर शीर्ष अदालत मुख्य धारा की इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और प्रिंट मीडिया के लिए दिशा-निर्देश देना जरूरी समझती है तो यह कवायद पहले वेब आधारित डिजिटल मीडिया से शुरू की जानी चाहिए। सरकार ने ये सुझाव शीर्ष अदालत को दे तो दिया है लेकिन उसे साबित भी करना होगा कि आखिर डिजिटल मीडिया ने कहाँ कहाँ अपनी हदें पार की हैं | सवाल ये उठता है कि मामला सुदर्शन टीवी के विवादित शो का है न कि वेब आधारित डिजिटल मीडिया का | तो ऐसी दशा में सरकार का रुख दूसरी ओर क्यों   है ?

सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने अपने नए हलफनामे में कहा है कि शीर्ष अदालत को व्यापक मुद्दे केंद्र सरकार और सक्षम विधायिका के निर्णय के लिए छोड़ देने चाहिए या फिर डिजिटल मीडिया से यह कवायद शुरू करनी चाहिए। मंत्रालय ने यह हलफनामा सुदर्शन टीवी के ‘बिन्दास बोल’ कार्यकम के खिलाफ दायर याचिका में दाखिल किया गया है। सुदर्शन टीवी के प्रोमो में दावा किया गया था कि चैनल सरकारी सेवाओं में मुसलमानों की घुसपैठ की कथित साजिश का पर्दाफाश करेगा। केंद्र ने पिछले सप्ताह इस मामले में एक संक्षिप्त हलफनामा दाखिल किया था। इसमें कहा गया था कि अगर शीर्ष अदालत मीडिया को नियंत्रित करने के लिए निर्देश जारी करने का फैसला करता है तो पहले यह कवायद डिजिटल मीडिया के साथ करनी चाहिए क्योंकि इसकी पहुंच ज्यादा तेज है और वॉट्सऐप, ट्विटर और फेसबुक जैसे ऐप की वजह से इससे खबरों तेजी से वायरल होती हैं।

नए हलफनामें में कहा गया है कि प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की संरचना को देखते हुये इनके द्वारा अपनी सीमा लांघने की घटनायें बहुत ही कम होती हैं जिसमें इस न्यायालय के हस्तक्षेप की जरूरत पड़ती हो । इसकी तुलना में वेब आधारित डिजिटल मीडिया मोटे तौर पर अनियंत्रित है। हलफनामे में कहा गया है कि प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की सीमा की तुलना में एक छोटे फोन के अलावा डिजिटल मीडिया के लिए और किसी चीज की जरूरत नहीं होती है। हलफनामे के अनुसार वेब आधारित डिजिटल मीडिया पर किसी प्रकार का कोई नियंत्रण नहीं है। डिजिटल मीडिया नफरत फैलाने के साथ ही जानबूझ कर हिंसा ही नहीं बल्कि आतंकवाद के लिए उकसा कर किसी व्यक्ति या संस्थान की छवि खराब करने में सक्षम है। वास्तव में यह सिलसिला बहुत ज्यादा है। हलफनामे में कहा गया है कि इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया पर अदालत द्वारा दिशानिर्देशों के माध्यम से या शिकायत समाधान व्यवस्था के माध्यम से कोई भी नया नियंत्रण इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को प्रसारण की बजाये उसी जानकारी को डिजिटल मीडिया के माध्यम से प्रसारित या प्रकाशित करने के लिए प्रेरित करेगा। हलफनामे में इस बात को दोहराया गया कि इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया के लिए पहले से ही कानून और न्यायिक व्यवस्थायें हैं। हलफनामे में कहा गया है कि न्यायालय इस मामले में दिशानिर्देशों के दायरे को अधिक व्यापक नहीं करना चाहिए और इसे सक्षम विधायिका के विवेक पर छोड़ देना चाहिए। हलफनामे के अनुसार भारत में करीब 385 नियमित समाचार चैनल हैं जिनके पास केंद्र सरकार की अपलिंकिंग डाउनलिंकिंग नीति दिशा निर्देशों के तहत लाइसेंस हैं या पंजीकृत हैं।

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