HomeArticleएतिहासिक इमारतें देखरेख के अभाव में दम तोड़ रही हैं दम

एतिहासिक इमारतें देखरेख के अभाव में दम तोड़ रही हैं दम

आंसू टपक रहे है हवेली के बाम से |
रुहें लिपट कर रोती है हर खास-ओ-आम से ||

अली हसनैन आब्दी फ़ैज़ लखनऊ

अफसोस शहरे लखनऊ की शान कई इमारतें ख़त्म होने के कगार पर हैं। सुल्तानाबाद इमामबाड़े का गेट धारा शाही हो गया अतिक्रमण हाउस को खोखला कर दिया रूमी गेट में दरार पड़ चुकी है और रूमी गेट की एक दीवार पर गुलाब पार्क की ओर से रोजाना दो से 3 ड्रम पेशाब टूरिस्ट बसों से आने वाले यात्री खुलेआम करते हैं धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व रखने वाली ऐसी ही एक इमारत है ग़ार वाली कर्बला। बुरी तरह जर्जर हो चुकी यह इमारत ज़मीन से मुलाकात को बेताब है। जिम्मेदारान अपनी आंखें बंद किए हुए हैं।
यह इमारत खदरा स्थित करबला मलका आफ़ाक़ साहिबा (गार वाली करबला) के नाम से मशहूर है।
इस इमारत का पुरसानेहाल कोई नहीं है। सब नजरों से दिखाई देता है मगर फिर भी नजरअंदाज क्यूं किया जा रहा है। जिम्मेदारान बेमतलब के कामों में समय व्यतीत कर रहे हैं मगर ऐतिहासिक इमारतों को देखने वाला कोई नहीं है।
अगर ऐसा ही चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब ये ऐतिहासिक इमारतें इतिहास के पन्नों में दफ़न हो जायेंगी।
बड़ी बड़ी खूबसूरत इमारतें जो लोगों को अपनी बाहों में ले लेती थीं। आज वह खुद ज़मीन की आगोश में जाने को बेक़रार हैं।इराक में मौजूद रौजो का अक्स लखनऊ में साफ़ साफ़ दिखाई देता है। इराक में मौजूद इमामों के रौजों की नक़ल बखूबी राजधानी में नवाबों ने बनवाई हैं। इनमें इमाम मोहम्मद काजिम अ.स.और इमाम मो. तकी अ.स. के इराक स्थित काजमान रौजे की नक़ल लखनऊ में रौज-ए-काजमैन के रूप में मौजूद है। इसके अलावा इमाम अली अ.स. और इमाम हसन अस्करी अ.स. के सामरा स्थित रौजे की हूबहू नकल यहां गार वाली कर्बला के रूप में मौजूद है।

एतिहासिक धरोहरों के लिए जिनका वजूद लखनऊ में खत्म हो चुका है या फिर वे जो अपने असतित्व बचाने के लिए वक्त के थपेड़ों से संघर्ष कर रही हैं। इन एतिहासिक इमारतों में आने वाले भी कहीं ना कहीं इसकों गंदा करने में जुटे हैं। विरासत की इन इमारतों पर जोड़ो ने कई जगह अपने नाम लिख दिए हैं। सिर्फ इतना ही नहीं लखनऊ को पहचान दिलाने वाली इन एतिहासिक इमारतों में लोगों ने
अवैध कब्जे भी कर रख हैं। हाल यह है कि कई जगह अतिक्रमण के चलते इनका गेट भी नहीं खुल रहा है।

डॉलीगंज स्टेशन और शिया कॉलेज के बीच मौजूद इरादत नगर की कर्बला मौजूद है। इसे लखनऊ का ताज महल भी कहा जाता है। मेसोपोटामिया वास्तु पर इराकी तर्ज इसे बनाया गया था। अवध के दूसरे बादशाह नसीरुद्दीन हैदर और कुदुसिया महल को यही दफनाया गया था।

लखनऊ की पहचान बन चुका रूमी गेट नवाबी दौर की याद दिलाता है। इसे भी संवारने का बरसों से नहीं हुआ है इसकी डाट में दरार पड़ चुकी है इसकी एक दीवार पर सैकड़ों टूरिस्ट रोज पेशाब करते हैं इसके एक साइड से जो सड़क निकाली गई थी उसका इस्तेमाल बसें खड़ी करने और पेशाब करने के लिए हो रहा है।

बड़ा इमामबाड़ा को आसिफुद्दौला ने करावाया था। इसे भूलभुलैया भी कहा जाता है।
एतिहासिक इमारतों में घूमने वाले जोड़े यहां पर तरह-तरह की डिजाइन बना देते हैं। इसके अलावा अपने नाम भी लिख देते हैं। सिर्फ इतना ही नहीं तमाम एतिहासिक इमारते ऐसी है जिनमें अवैध कब्जे मौजूद हैं। जिला प्रशासन के पास मौजूद आंकड़ों की माने तो हेरीटेज बिल्डिंग्स में एक हजार से अधिक अवैध कब्जे मौजूद हैं। भले ही सरकार एतिहासिक धरोहरों के जरिए पर्यटकों को लुभाने में लगी हो, लेकिन अवैध कब्जे और अतिक्रमण इसकी राह में रोड़े बने हुए हैं।

एतिहासिक धरोहरों को ठीक कराने के साथ ही उनका सौंदर्यीकरण किया जाना चाहिए पिछली सरकार में कुछ काम हुआ था परंतु सत्ता बदलने के साथ ही काम रुक गया। ये हमारे लखनऊ की पहचान है। इन धरोहरों की सुरक्षा के लिए भी व्यापक इंतजाम किए गए हैं। लखनऊवासियों को भी सोचना चाहिए कि यह उनकी विरासत है जिसे सहजना भी उनकी ही जिम्मेदारी है।

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