पाठकों के द्वारा ग़ज़लों को पसंद किए जाने को देखते हुए फिर से ग़ज़लों का कालम शुरू किया जा रहा है। आज हम नौजवान शायर जनाब तय्यब लखनवी साहब की ग़ज़ल पेश कर रहे हैं।
ग़ज़ल
हादसे मेहरबान होते हैं ।
जब यकीं में गुमान होते हैं।।
आज फिर उसकी याद आई है।
आज हम फिर जवान होते हैं।।
दिल से ख़ुशियां हुईं मेरे रुखसत।
और ग़म मेहमान होते हैं।।
ठीक से रो भी वो नहीं सकते।
जिनके कच्चे मकान होते हैं।।
जब ज़मीं नाम तेरा लेती है।
ख़ुश बहुत आसमान होते हैं।।
इश्क़ काटों से भी जो करते हैं।
बस वोही बाग़बान होते हैं।।
धूप कुछ और भी सताती है।
पास जब सायबान होते हैं।।
मुतमइन रूह जिससे हो जाए।
अब कहां वो बयान होते हैं।।
वो किताबों से बात करते हैं।
लफ्ज़ कब बेज़बान होते हैं।।
क्या तुम्हें ये पता न था तय्यब।
इश्क़ में इम्तेहान होते हैं।।