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तमाम शहर में बरसा मैं बादलों की तरह। मगर वह आग लगाने में कामयाब रहा।।

तमाम शहर में बरसा मैं बादलों की तरह।
मगर वह आग लगाने में कामयाब रहा।।

लखनऊ, संवाददाता। “बज्म ए शारिब लखनवी” के जेरे एहतमाम कल रात 10:00 बजे दरगाह हज़रत अब्बास रोड पर वाकेह हवेली कैफे में मुशायरे का इनएकाद किया गया । मुशायरा शारिब लखनवी की याद में आयोजित किया गया ।
मुशायरे की निज़ामत खुद शारिब लखनवी साहब मरहूम के फरजंद हबीब शारबी साहब ने की।
जबकि इस मुशायरे की सदारत मशहूर शायर नय्यर मजीदी ने की। जबकि इस मुशायरे के कनवीनर शेख़ साजिद हुसैन साहब थे।
मुशायरे में चुनिंदा शायरों का इंतखाब किया गया था ।
मुशायरे का आगाज़ अपनी तकरीर से करते हुए फरीद मुस्तफा ने कहा कि इस तरह के मुशायरे या नाशिस्तें लखनऊ में खत्म हो चुकी है।उन्होंने कहा के इस तरहा के मुशायरो का होना फिर से लखनऊ में जरूरी हो गया है । इससे जहां आपसी इत्तेहाद में मजबूती होती
है वही एक दूसरे से मुलाकात होकर एक दूसरे के सुख और दुख का हाल भी जान लिया जाता है। उन्होंने कहा के शारिब लखनवी एक मशहूर मअरूंफ शायर थे। दुनिया उनके इंतकाल के बाद भी उनको, उनकी शायरी के जरिए आज भी याद कर रही है । उन्होंने कहा कि इस तरह की नशिश्तों के लिए मैं शारिब लखनवी साहब के फरजंद हबीब साहब को मुबारकबाद पेश करता हूं ,के उन्होंने इस तरह की नशिश्त रखकर लखनऊ में उर्दू अदब को फरोग देने की कोशिश की।
फरीद मुस्तफा साहब की तकरीर के बाद नाजिम ए मुशायरा हबीब शारबी साहब ने मुशायरे का आगाज़ किया और मशहूर शायर शेख साजिद लखनवी को दावत दी।
शेख साजिद साहब ने अपने कलाम से मुशायरे के आगाज़ में ही मुशायरे को कामयाबी की बलंदी पर पहुंचा दिया।
शेख साजिद के इस शेर पर…………………….
हम कभी शिद्दते जज़्बात नहीं लिख सकते।
ख़ुद पा गुज़रे हुए लम्हात नहीं लिख सकते।।

सामेईन ने उनके इस मतले की तारीफ तालियां बजाकर की।
शेख साजिद के बाद शायर आज़ादर आज़मी साहब को नाजिम ए मुशायरा हबीब शारबी ने दावते सुखन देते हुए उनसे अपना कलाम पेश करने की गुजारिश की।
आज़ादर अज़मी ने भी अपनी कई गजलों से मौजूद समेंईन में जान डाल दी । उनका एक शेर लोगों को बहुत पसंद आया ।जिसे कई मर्तबा पड़वाया गया..……………….

तेरे जमाल की जद पर उसी को आना था।
जिस आईने के मुकद्दर में टूट जाना था।।

अज़ादर अज़मी की गजलों के बाद शायर जकी भारती को नाजिम ने दावते सुखन दी।
उन्होंने वैसे तो कई गजलों को सामेंईन की मांग पर सुनाया, लेकिन उनके कई शेरों पर उन्हें दाद ओ तहसीन से नवाजा। उनका यह शेर बहुत ज्यादा सराहा गया …………….

फ़स्ल जख्मों की मिली है तो तड़पना कैसा।
बीज खंजर के जो बोए थे तो खंजर निकले।।

और उनके दूसरे शेर ……….

मुफलर्सी उस जगह प ले आई।
जिस जगह सब हलाल होता है।।

पर भी सामेंईन ने जमकर तालियां बजाई और दादो तहसीन से नवाज़ा।
जकी भारती साहब के बाद मशहूर शायर वा नाजिम ए मुशायरा हबीब शारबी साहब ने अपने मख्सूस अंदाज़ में गज़लें पेश की।
उनका ये शेर सामेईन ने बहुत पसंद किया।

मेरी आंखों में छलक आया है दरिया फिर से।
किसने दरवाज़ा ए एहसास पा दस्तक दी है।।

हबीब साहब के बाद मशहूर व माअरूफ शायर फरीद मुस्तफा साहब को नाजिम ने दावत देते हुए उनकी तारीफ करते हुए उनका इस्तेकबाल किया।
उन्होंने अपने कलाम के आगाज़ में ही मुशायरा को और बुलंदी बख्श दी । फरीद मुस्तफा साहब के इस शेर को मौजूद लोगों ने खूब सराहा………………

पूछो न मुझसे कैसे गुजारी है ये हयात।
किरदार मुख्तलिफ थे अदाकार मैं ही था।।

फरीद मुस्तफा साहब के बेहतरीन कलाम के बाद सीनियर शायर नय्यर मजीदी जब माइक पर आए तो लोग तालियां बजाने लगे । नय्यर मजीदी से सामेंईन ने फरमाइश करके कई गजलें सुनी लेकिन उनके इस शेर को……………….

तमाम शहर में बरसा मैं बादलों की तरह।
मगर वह आग लगाने में कामयाब रहा।।

लोगों ने कई मरतबा सुना।
नय्यर मजीदी के बेहतरीन कलाम के बाद मख्ता ए मुशायरा जनाब एजाज जैदी साहब को नाजिम ए मुशायरा हबीब शारबी साहब ने दावत दी।
एजाज जैदी साहब ने आते ही मुशायरे को आसमान पर पहुंच दिया।
उन्हें मौजूद सामेईन ने उनकी जमकर हौसला अफजाई की। उनका ये शेर बहुत मकबूल हुआ …………..

नामे हक़ पर ऐक दो लफ्ज़े भी कह सकते नहीं।
किस क़दर मुफलिस लबे गुफ्तार होकर रह गए।।

एजाज जैदी साहब के बाद सदरे मुशायरा ने सभी का शुक्रिया अदा किया और कहा की अगले होने वाले मुशायरों में आप हजरात शिरकत करके मुशायरों को कामयाब बनाए।
इसके बाद मुशायरे का इख्तेतम हो गया।

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