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ग़रीब बाज़ारी कर रहे इन तथाकथित पत्रकारों और भ्रष्ट पुलिस कर्मियों पर कैसे लगेगी लगाम ?

ज़की भारतीय

समाज को आईना दिखाने वाले पत्रकार हो रहे हैं कलंकित

लखनऊ। समाज को आईना दिखाने वाला पत्रकार ही जब कलंकित होने लगे तो आखिर अपने चेहरे की कमियों को ढूंढने वाला इंसान कहां जाकर अपनी कमियों को देखे ? पत्रकारिता के मामले में कहा जाए तो इस समय पत्रकारिता दो भागों में बटी हुई है | एक भाग वह है जिसे गोदी मीडिया का नाम दिया जा चुका है और दूसरी पत्रकारता अभी भी निष्पक्ष और निर्भीक हो रही है। लेकिन निष्पक्ष और निर्भीक पत्रकारों की संख्या गोदी मीडिया के आगे ना के बराबर है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं की सच्चाई खत्म हो गई, अभी निष्पक्ष और निर्भीक पत्रकारों के कारण पत्रकारिता आखरी सांस ले रही है ।सोशल मीडिया पर भी पत्रकारिता अपनी ताक़त का प्रदर्शन कर रही है । सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ने भी किसी को उखाड़ फेंकने के लिए अहम् भूमिका निभाने शुरू की है ।बहरहाल इस समय कुछ यूट्यूबर और पोर्टल चैनल के अलावा तथाकथित पत्रकारों ने इस प्लेटफार्म को सिर्फ इसलिए गोद ले रक्खा है कि वह इसके माध्यम से गरीब बाज़ारी करें और अपना जीवन यापन दलाली के दम पर गुज़ार सकें । इस तरह के सैकड़ो मामले मेरी दृष्टि में आ रहे थे लेकिन फिर भी मैं इस तरह के मामलों को नजरअंदाज करता आ रहा था। लेकिन आज मैं सच्चाई को लिखने के लिए विवश हो गया हूँ क्योंकि यह दलाल पत्रकार निर्धन लोगों का उत्पीड़न करके अवैध रूप से कमाए गए धन से अपना जीवन यापन कर रहे हैं ,जो बिलकुल गलत है । खबर के नाम पर जिनको कुछ लिखना ही नहीं आता, आज वो लोग खुद को पत्रकार बताकर मजबूर और बे सहारा लोगों को लूट रहे हैं । ऐसे पत्रकारों की खबर कहां और किस यूट्यूब चैनल में लगती है लोगों को यह भी नहीं पता।

हाथ में मोबाइल, काम गरीब बाज़ारी

हाथ में मोबाइल और गरीब बाज़ारी इनका काम बन चुका है। यह वसूली के मामले में उस पुलिस को भी नहीं छोड़ते हैं जो खुद बहुत बदनाम है । यह बात तय है कि ऐसे पत्रकार अगर समाज में बढ़ते गए तो आने वाले समय में सही पत्रकारों की भी इज्जत नहीं रह जाएगी। कल सआदतगंज थाना क्षेत्र में कुछ सब्जी के ठेले वालों की मूवी बनाते हुए कुछ तथाकथित पत्रकार मेरी निगाहों में आए ,मैंने भी उनके जाने के बाद ठेले वालों से पूछा कि यह पत्रकार तुमसे क्या कह रहे थे, उन लोगों ने पहले तो बहाना बनाने की कोशिश की लेकिन बाद में अपना दर्द बयां कर दिया ।उन लोगों ने बताया कि यह वह पत्रकार हैं जो हमारे ठेलों की मूवी बनाकर पुलिस द्वारा हमारी दुकानों को नहीं लगने देते हैं और कहते हैं कि यदि प्रति ठेला तुम लोग ₹20 दो, तो अपने ठेले लगा सकते हो। यही नहीं, कभी इनको सब्जी या फलों की जरूरत होगी तो वह भी इन घुमंतू ठेले वालों को निशुल्क देना होगी ।ठेले वालों की व्यथा सुनकर बहुत अफसोस हुआ मैंने सोचा कि पानी सर से ऊंचा हो रहा है । क्यों ना अब यह सच्चाई समाज के सामने रखी जाए। इसी तरह का एक मामला मेरे सामने बाजारखाला इलाके का, एक मामला चौक कोतवाली के अंतर्गत बालागंज का और एक मामला अमीनाबाद क्षेत्र का सामने आया । बस फर्क यह था की इन तथाकथित पत्रकारों के शिकार अलग-अलग थे । जैसे की नक्खास में यह पत्रकार ई-रिक्शा चालकों से ई-रिक्शा खड़े करने के₹30 लेते हैं । चरक चौराहे से नक्खास और नक्खास से चरक चौराहे तक जाने वाले ई रिक्शा चालकों से यह परमिट के नाम पर ₹30 प्रति रिक्शा लेते हैं । हालांकि ऐसे मामलों में सिर्फ यह पत्रकार जिम्मेदार नहीं है ।इसके पीछे पुलिस भी अहम भूमिका निभाती है ।सड़क पर लगने वाली दुकानों से भी यह तथा कथित पत्रकार जमकर वसूली कर रहे हैं । बाजार खाला थाना क्षेत्र के अंतर्गत कई पत्रकार ऐसे हैं जिनकी वसूली की रिकॉर्डिंग मुझे ठेले वालों ने दिखाई । मैं चाहूं तो उनके चेहरे अपने यूट्यूब चैनल के माध्यम से उजागर कर दूँ लेकिन मेरा उद्देश्य है कि ऐसे तथाकथित पत्रकार अपनी मर्यादा में रहे और गरीब बाज़ारी करना छोड़ दे ।

टोली बनाकर करते हैं दुकानदारों से वसूली

बाजारखाला कोतवाली क्षेत्र के अंतर्गत पढ़ने वाली मिल एरिया चौकी के बहुत नजदीक कुछ दुकानदारों ने बताया की ऐसे पत्रकारों की एक टोली है जो हमारे ठेलों पर आकर हमसे फल खरीदने हैं और बिना पैसे दिए चले जाते हैं ,जब उनसे पैसे मांगते हैं तो वह कहते हैं तुम भी सरकारी जमीन पर अवैध रूप से ठेले लगाकर दुकानदारी कर रहे हो। अगर तुम मेरे साथ इतना भी नहीं कर सकते तो मैं तुम्हारी दुकान नहीं लगने दूंगा। यह सोचकर चिलचिलाती हुई धूप में नंगे सर खड़े रहने वाले यह दुकानदार अपने बच्चों की परवरिश को देखते हुए खामोश हो जाते हैं । कुछ दुकानदारों का तो यहां तक कहना है कि यह लोग हमारी दुकानों से चाय भी फ्री में पीते हैं और पानी की बोतलों के भी पैसे नहीं देते। इस तरह के तमाम मामले मेरी नजरों में आ रहे थे जिन्हें सुनकर मैं खामोश तो था लेकिन मेरी पत्रकारता का जमीर मुझे झकझोर रहा था, इसलिए मैंने इस खबर को लिखा ।

सट्टे की ज़द पर शहर, स्मैक और ब्राउन शुगर जैसे खतरनाक नशों का कारोबार जारी

कुछ मामले ऐसे हैं कि जिनके रोका जाना बहुत ज्यादा जरूरी है क्योंकि अगर समाज में वह गंदगी फैली तो उसे जहां रोकना मुश्किल हो जाएगा वही वह हमारे या आपके घरों के बच्चों को शिकार बना लेगा । दरअस्ल पुराने लखनऊ में जहाँ लोग सट्टे की ज़द पर आ रहे हैं और सटोरिये उनका फायदा उठाकर लाखों रुपया कमा रहे हैं तो वहीं स्मैक और ब्राउन शुगर जैसे खतरनाक नशों के कारोबारी निडर होकर यह जहर बेच रहे हैं । इस जहर को बेचने में पत्रकारों की नहीं बल्कि पुलिस की संलिप्ता पाई जा रही है ।
सूत्रों की माने तो यह नशा पान की दुकानों के माध्यम से घर-घर पहुंच रहा है। पुलिस को इतना पैसा दिया जा रहा है कि यह दुकानदार आसानी से लोगों को इसकी पुड़िया बेच रहे हैं । भले ही इस कारोबार को करवाने में कुछ अधिकारियों का हाथ शामिल न हो लेकिन निचले पुलिस कर्मचारी इसी तरह कि नाजायज़ कमाई से अपनी लग्जरी लाइफ जी रहे हैं । अगर इन बातों पर अंकुश नहीं लगाया गया तो सिर्फ हमारा लखनऊ ही नहीं बल्कि हमारा भारत नशे की चपेट में आता जाएगा और हम खोखले हो जाएंगे । लिहाजा पुलिस के जिम्मेदार अधिकारियों से उम्मीद की जाती है कि वह लोग इस तरह के लोगों के विरुद्ध एक ऐसा गुप्त अभियान चलाएं जिससे गरीब बाज़ारी करने वाले तथाकथित पत्रकार भी जेल की सलाखों के पीछे पहुंचे और हमारे देश को तबाह करने की साजिश करने वाले लोग भी अपनी बची हुई जिंदगी जेल की सलाखों के पीछे गुज़ारें ।
जारी ———-

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