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शायरे अहलेबैत सहबा जरवली के घर में हुआ तरही मसालमा, मशहूर शायरों ने की शिरकत

लखनऊ (सवांददाता) दुनिया भर में अपनी शायरी का लोहा मनवाने वाले सहबा जरवली के शीश महल लखनऊ में वाकेह उनके दौलत खाने पर कल देर रात 40 बरसों से जारी चौथे इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स) की शान में होने वाला तरही मसालमा मुनक़्क़िद हुआ | इस मसालमे में शायरों ने अपना तरही कलाम पेश किया | इनमे तजस्सुस ऐजाज़ी, सरवन नवाब, (सरवर लखनवी), तय्यब काज़मी, नासिर जरवली , सहबा जरवली, शहदा आज़मी, हसन फ़राज़ , मंज़र उतरौलवी ,शकील उतरौलवी, रिज़वान उर्फी , शान आब्दी, अनीसुल हसन, नजफ़ उतरौलवी, हबीब शारबी, ज़की भारतीय, ज़ीशान रिज़वी ,नग़मी मोहनी , अज़हर मोहनी, ताज लखनवी समैत लखनऊ के नामचीन शायरों ने शिरकत की | मसालमे के बाद शान अब्दी ने मुख़्तसर सी मजलिस को ख़िताब किया | उन्होंने चौथे इमाम आबिदे बीमार के मसायब
पड़े जिसे सुनकर अक़ीदतमंद गिरया करने लगे | मजलिस के बाद चौथे इमाम का ताबूत भी बरामद हुआ |
इस बार जो मिसरा निकाला गया था वो “हज़रते अब्बास को जिसने कभी देखा न था ” दिया गया था |
इस मिसरे में रदीफ़ ”न था” मुक़र्रर की गई थी और इसके क़ाफिये दरिया, सजदा, अपना, देखा वगैरह थे | कल के इस मसालमे का आगाज़ तिलावते कलामे पाक से हुआ था | इस मसालमे की निज़ामत अख्तर मौरानवी ने की |
तजस्सुस ऐजाज़ी ने तरही कलाम पड़ते हुए कहा कि
नक़्शे हैरत बन गया अकबर की सूरत देखकर |
जिसने मुरसल को जवानी में कभी देखा न था ||
है यकीं इस पर भी खुद हैदर ही वजउल्लाह हैं |
था अज़ल से ही यकीं अल्लाह का चेहरा न था ||
उसने मशकीज़े से परचम की बढ़ाई आबरू |
कर्बला से क़ब्ल भी परचम था मशकीज़ा न था ||
तश्नगी को उसकी खुद उनकी वफाओं का सलाम |
शेर के क़दमों में क्या मौजें थीं क्या दरिया न था ||

तजस्सुस ऐजाज़ी के इस बेहतरीन कलाम के बाद सरवर नवाब ने भी बेहतरीन कलाम पड़ते हुए मसालमे को लूट लिया | सरवर नवाब ने सलाम पड़ते हुए जब शेर सुनाना शुरू किये तो मसालमे में और चार चाँद लग गए | उन्होंने अपने कलाम में कहा कि
ढा दिया एक ज़रबते इन्कार से वो तुम ही थे |
वरना बैयत का महल ऐसा तो बोसीदा न था ||
कर्बला की सम्त से इस वास्ते जन्नत गए |
फासला भी कम था और रस्ता भी पेचीदा न था ||
बस उसी को राह से वापस किया शब्बीर ने |
नुसरते दीने इलाही में जो संजीदा न था ||
इस तरफ ख़ौफ़े जरी था उस तरफ शौखे जिहाद |
कोई भी ख़ेमा शबे आशूर खाबिदा न था ||
उस ज़मीं से रोज उगते हैं महो, मेहरो,नजूम |
एक दिन था जब वहाँ सब्ज़ा भी रोहीदा न था ||

इसके अलावा भी सरवर नवाब नें और बेहतरीन अशआर सुनाए | सरवर लखनवी के अलावा सीनियर शायर तय्यब काज़मी ने भी इस तरही कलाम ने बेहतरीन शेर सुनाए, उन्होंने कहा ,
हो गई होगी सरो-तन में जुदाई दश्त में |
शह का लश्कर मकसदियत में मगर हारा न था ||

 

 

 

तय्यब काज़मी के बाद मंज़र उतरौलवी ने भी बेहतरीन शेर सुनाए उनका एक शेर कई बार पढ़वाया गया |
उस जगह इस्लाम को शब्बीर ने बख्शी हयात |
दीने पैग़म्बर जहां पर साँस ले सकता न था ||

 

 

 

इसी तरह शायरे अहलेबैत नासिर जरवली ने भी बेहतरीन शेर पेश किये जिनमे,
पेशे असग़र ज़ुल्म की आखों में आंसू थे मगर |
मुस्कुराती कमसिनी का हौसला टूटा न था  ||

 

 

 

शेर भी कई मरतबा पढ़वाया गया, नासिर जरवली के बाद बानिये मसालमा सहबा जरवली ने भी बेहतरीन शेर सुनाए जिनमे,
लौ चरागे तश्नगी की थरथराती तीरगी |
ऐसा मक़्तल था जहां हुक्मे खुदा चलता न था ||

 

 

 

ये शेर अक़ीदत मंदों को बेहद पसंद आया | सहबा जरवली के बाद शकील उतरौलवी ने भी अपना तरही कलाम पेश किया जिसमे उनका ये शेर भी बहुत ज़्यादा पसंद किया गया |
कर्बला आकर मदीने से हुआ यूँ बेनक़ाब |
ज़ुल्म आईना हुआ ज़ालिम भी पोशीदा न था ||

 

 

 

 

इसके बाद शायर हसन फ़राज़ ने भी अपना कलाम पेश किया जिसमे उनके कई शेर पसंद किये गए |
कैसे कह दू आयतों का क़ाफ़िला आया न था |
मजलिसे शब्बीर थीं घर में कोई जलसा न था ||
चश्मे म रौशन दिले माशाद को समझा न था |
मैंने जब तक रौज़ए शब्बीर को देखा न था ||

 

 

 

 

हसन फ़राज़ के बाद शायरे अहलेबैत ज़की भारतीय ने भी तरही कलाम पेश करते हुए कहा कि,
ऐ ज़की दरिया का पानी इसलिए सूखा न था |
हज़रते अब्बास की वो तश्नगी समझा न था ||
हैबते अब्बास ने नैज़े से रूहें खैंच लीं |
अब सिपाहे शाम के जिस्मों में कुछ रक्खा न था ||
इसलिए अब्बास ने चुल्लू में दरिया भर लिया |
तश्नगी को नापने का कोई पैमाना न था ||
दिल की हरकत रुक गई उनकी भी फौजे शाम में|
हज़रते अब्बास ने जिनकी तरफ देखा न था ||

 

 

ज़की भारतीय के बाद ज़ीशान हैदर रिज़वी ने भी बेहतरीन कलाम पेश करते हुए कहा कि,
 मक़तलों में ज़ेरे खंजर जब तेरा सजदा न था |
बंदगी की इंतेहा का कोई पैमाना न था ||
कट के भी तेरा ही सर था आसमानों से बलन्द |
ज़ुल्म के खंजर को तेरे क़द का अंदाज़ा न था ||
अपने मुजरिम की ख़ताये बख्शने की फ़िक्र में |
तुमसे पहले कोई मुंसिफ रात भर जागा न था ||

 

 

इसी तरह मसालमा रात भर जारी रहा और मसालमे के बाद ताबूत और अलम बरामद हुआ |
अक़ीदत मंदों ने ताबूत और अलम के बोसे लिए और नौहा ख्वानी व सीनाज़नी करके मज़लूम इमाम को पुरसा दिया |

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