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मौलाना कल्बे जव्वाद ने गुफरान माब में ख़िताब की योमे अब्बास की मजलिस

 
लखनऊ (संवाददाता) कर्बला की जंग में सब शहीद हो चुके अब सिर्फ बड़ों में बीमार इमाम सय्यदे सज्जाद अस बचें हैं ,ज़ालिमों का ज़ुल्मो सितम जारी है ,ऐसे में मज़लूम हुसैन अस के घरवालों को आज हजरत अब्बास अस की याद सता रही है| क्योंकि हज़रत अब्बास अस के होते किसी की हज़रत इमाम हुसैन अस की तरफ नज़र उठाने की हिम्मत नहीं थी,जो तलवार से ज़मीं पर निशान खैच देता था तो यज़ीदी लश्कर उस निशान को पार नहीं करता था,आज उसी के घरवालों पर ज़ुल्म किया जा रहा है, कोई मददगार नहीं है |आज रात 10 बजे इमामबाड़ा गुफरानमाब में यौमे अब्बास अस के उन्वान से मुनअक़िद मजलिस को मौलाना सय्यद कल्बे जव्वाद नक़वी ख़िताब कर रहे थे |उन्होंने हज़रत अब्बास अस के फ़ज़ाएल पढ़ते हुए कहा कि हज़रत अली अस ने परवरदिगार से अब्बास के सिवा कुछ माँगा ही नहीं| उन्होंने कहा कि हज़रत अली अस को शेरे खुदा का खिताब मिला और हज़रत अब्बास अस को शेरे अली अस का ख़िताब मिला था | उन्होंने कहा कि वैसे तो यज़ीद के लश्कर के खात्मे के लिए हज़रत अब्बास अस अकेले ही बहुत थे मगर हज़रत इमाम हुसैन अस की मर्ज़ी अल्लाह की मर्ज़ी थी |इसलिए उन्होंने वही किया जो हुसैन का हुक्म था |उन्होंने कहा कि आज यौमे अब्बास है इसलिए आज अब्बास का ज़िक्र वाजिब है |
आखिर में उन्होंने हज़रत अब्बास अस कि जंग पढ़ी ,उन्होंने कहा कि जब अब्बास अस को पानी लेने भेजा गया तो तलवार ले ली और एक टुटा हुआ नैज़ा दिया गया साथ ही ये भी हुक्म दिया गया कि सिर्फ हिफाज़त में नैज़ा चलाना जंग मत करना ,उसके बावजूद जब अब्बास अस नहर कि तरफ चले तो लाखों का लश्कर अपनी जान बचाकर भाग खड़ा हुआ और अब्बास ने दरिया पर क़ब्ज़ा किया और चुल्लू में पानी लेकर दूर भागी फौजों को दिखाया |मक़सद ये था कि तेरे पहरे कि कोई हैसियत नहीं, हम अगर चाहते तो कबका दरिया हमारे क़ब्ज़े में होता |
इसके बाद उन्होंने हज़रत अब्बास अस कि शहादत का ज़िक्र किया |उन्होंने कहा कि अब्बास अस ने मश्क को भरा और खेमे की जानिब बढे ,ये देखकर दुश्मनों में खलबली मच गई ,आवाज़ दी गई की अगर एक बून्द पानी भी हुसैन के खेमों में पहुंच गया तो सारी मेहनत बेकार हो जाएगी और हम सब मारे जाएंगे |ये सुनकर भागी हुई फौजें वापिस होने लगीं और मश्क पर तीर चलाए जाने लगे |हज़रत अब्बास अस मश्क पर तीर नहीं लगने देना चाह रहे थे,क्योंकि उन्होंने हुसैन अस की बेटी अपनी भतीजी शहज़ादी सकीना से वादा किया था की वो पानी लेने जा रहे हैं |और अगर मश्क पर तीर लग जाता तो पानी बह जाता इसीलिए हर तीर उनके लग रहा था |यही नहीं उन्हें अलम भी नहीं गिरने देना था क्योंकि अलम जब झुकता था तो खेमे के प्यासे बच्चे घबरा जाते थे ,लेकिन इसी दौरान हज़रत अब्बास अस के दोनों हाथ क़लम हो गए और एक तीर उनकी आंख में लगा,उन्होंने उसे निकालने के लिए जैसे ही अपने दोनों घुटनों को जोड़ा और तीर फसाया वैसे ही उनके सर पर गुर्ज़ मारा गया अब्बास अस का सर टुकड़ों में तक़सीम हो गया और अब्बास वापिस खेमे की तरफ नहीं आए बल्कि फौजों की जानिब इसी हाल में चले गए |ये पहले शहीद हैं जो अपने खेमे में नहीं फौजों में चले गए ,शायद वो सकीना का सामना नहीं करना चाहते थे |मसायब सुनकर अकीदतमंद गिरया करने लगे या सकीना या अब्बास के साथ सीनाजनी करके हज़रत अब्बास अस को पुरसा दिया |

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