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महागठबंधन के बाद कांग्रेस कि दलित वोट बैंक की पार्टी में वापसी पर मेहनत शुरू

लखनऊ (सवांददाता)। वैसे तो कांग्रेस ने भाजपा के विरुद्ध आगामी लोकसभा चुनाव के लिए महागठबंधन की तैयारी पूरी कर ली है और यही नहीं राहुल गाँधी ने यहाँ तक कह दिया है कि उन्हें भाजपा के विरुद्ध कोई भी चेहरा प्रधानमंत्री के लिए स्वीकार है| अब कांग्रेस दलितों को लुभाने की कोशिशें में लग गई है। दलित वोट बैंक की पार्टी में वापसी कराने के लिए नेताओं से दलित बस्तियों में नुक्कड़ सभाओं और छोटी बैठकों के जरिये भाजपा की जनविरोधी नीतियों एवं कार्यक्रमों का विरोध करने का अपने कार्यकर्ताओं से आवाहन किया गया है| दलितों पर बढ़ते अत्याचार और आरक्षण विरोधी मानसिकता को प्रचारित किया जाएगा जब्कि संविधान बचाओ अभियान की कमान अनुसूचित जाति के कार्यकर्त्ता संभाले हुए हैं|
इस अभियान की शुरुआत राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने की थी। इसके प्रथम चरण में संविधान बचाओ पदयात्राएं की गईं। राज्यसभा सदस्य पीएल पुनिया का कहना है कि कार्यकर्ता गांव-गांव में जाकर भारतीय जनता पार्टी व आरआरएसएस की दलित विरोधी नीतियों को उजागर करेंगे। भाजपा की संविधान में बदलाव की साजिशों का भी पर्दाफाश होगा। भाजपा शासित राज्यों में दलितों पर बढ़ते अत्याचार व उत्पीडऩ की घटनाओं की जानकारी दी जाएगी। इसके साथ ही कांग्रेस द्वारा वर्ष 1917 से लगातार एससी-एसटी के विकास और हित में बनायी तमाम जनकल्याणकारी योजनाओं के बारे में बताया जाएगा। दलित, शोषित, वंचित समाज को देश की मुख्यधारा से जोडऩे की कोशिशें होंगी। कांग्रेस अनुसूचित विभाग की प्रवक्ता सिद्धि श्री ने आरोप लगाया कि प्रदेश में सरेआम दलित महिलाओं से अत्याचार व हत्या जैसी घटनाएं बढ़ी हैं और उन्हें समुचित न्याय नहीं मिल पा रहा है। अनुसूचित जाति व जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम-1989 का सही तरीके से क्रियान्वयन नहीं हो पा रहा है। प्रत्येक जिले में कोआर्डिनेटर की नियुक्ति की जाएगी जो पीडि़त दलितों को विधिक अधिकार दिलाने का प्रयास करेंगे। इसके अलावा अनुसूचित जाति विभाग में दलितों के हितों में जिलावार ‘दलित हेल्प सेंटर’ खोलना भी अभियान में शामिल है। इसमें एससी-एसटी वर्ग के पीडि़तों की समस्याओं को दूर करने का प्रयास किया जायेगा। सिद्धि श्री ने बताया कि ‘संविधान बचाओ-देश बचाओ’ एक वर्ष तक चलेगा। इसका उद्देश्य शोषित, वंचित, दबे-कुचले लोगों को सामाजिक न्याय मिले और संविधान प्रदत्त अधिकारों के तहत बराबरी का दर्जा मिल सके।

 

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