दुनिया भर में अपनी शायरी का लोहा मनवाने वाले मशहूर शायर जनाब काज़िम जरवली साहब के अशआर दुनिया भर के नाज़िमें मुशायरा की विर्दे ज़बान रहते हैं,ये वो शायर हैं जिनको सुनने के लिए समेंईन बे क़रार रहते है।
आज हमारे एन.एस लाइव न्यूज़ पोर्टल की ख़ुशनसीबी है कि उन्होंने मेरी गुज़ारिश क़ुबूल करते हुए अपनी बेहतरीन ग़ज़ल पेश की , जिसे आप हज़रात की समाअत के हवाले किया जा रहा है।
जनाब काज़िम जरवली साहब
ग़ज़ल
ख़ुश्क होटों प मेरे अपने लबे तर रख दे।
मेरे साक़ी मेरे सहरा प समंदर रख दे।।
मक़्तले इश्क़ में अब तक जो पड़ी है बे सर।
कोई उस लाश प ले जाके मेरा सर रख दे।।
ज़द में है तेज़ हवाओं की किताबे हस्ती।
कोई उड़ते हुए औराख़ प पत्थर रख दे।।
ज़िन्दगी क़ैद न कर जिस्म के ऐवानों में।
यह चराग़ अपना किसी राहगुज़र पर रख दे।।
इन्तेक़ाब अस्ल में उस वक़्त मुकम्मल होगा।
ज़ानुवे ख़ार प जब फूल कोई सर रख दे।।
या तो हर शख़्स मेरे हाथ प बैअत कर ले।
या कोई बढ़के मेरे हल्क़ प खंजर रख दे।
आज काज़िम जो नहीं तेरे हुनर के क़ायल।
रूबरू उनकें सहीफे कोई लिखकर रख दे।।