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जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद—370 एवं धारा 35 ए हटने के बाद से अबतक के जानिए लाभ

 

माहिर हुसैन

 राम-मंदिर के शिलान्यास और भूमि-पूजन कार्यक्रम ने संपूर्ण देश-दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। यह सहज एवं स्वाभाविक भी था। परंतु यह दिवस (5 अगस्त) एक और दृष्टिकोण से ऐतिहासिक एवं उल्लेखनीय महत्त्व रखता है। इसी दिन गत वर्ष जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद—370 एवं धारा 35 ए को हटाने की घोषणा की गई थी। परंतु शिलान्यास एवं भूमि-पूजन के विश्वव्यापी प्रभाव-प्रसारण, आनंद-आह्लाद में इस धारा एवं अनुच्छेद को हटाए जाने के एक वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य पर उसके व्यापक प्रभाव एवं परिणामों पर पर्याप्त विमर्श-विश्लेषण नहीं हो सका।

इस अनुच्छेद के हटने के बाद वहाँ की सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक स्थितियों से लेकर वहाँ के शासन-प्रशासन और उनकी दैनिक कार्यशैली में आए बदलावों को रेखांकित करने की आवश्यकता है। बीते एक वर्षों में वहाँ संचार और आधारभूत संसाधनों के विकास पर जोर दिया गया है। भ्र्ष्टाचार पर लगाम कसी गई है। सरकारी कार्यों का ठेका अब महज कुछ खास रसूखदारों और राजनीतिक घरानों तक सीमित नहीं रहा है। पंचायतों का चुनाव कराकर पंचायत समिति एवं सरपंचों को अधिकार-संपन्न बनाया जा रहा है। उनके माध्यम से स्थानीय स्तर पर सरकारी योजनाओं को लागू किया जा रहा है और वहाँ की आम जनता को उन योजनाओं का सीधा लाभ प्रदान कर उन्हें मुख्यधारा में शामिल किया जा रहा है।
सरकारी नौकरियों से लेकर वहाँ रोज़गार के नए-नए अवसर सृजित किए जा रहे हैं। एक आंकड़े के अनुसार बीते एक वर्ष के दौरान बहुत सारे लोगों को सरकारी नौकरियाँ दी जा चुकी हैं और पच्चीस हज़ार और नौकरियाँ दिए जाने की योजना है। इतना ही नहीं जम्मू-कश्मीर में रह रहे 44 हजार कश्मीरी प्रवासी परिवारों के लिए लगभग छह हजार पद आरक्षित किए गए हैं, जिनमें से चार हज़ार पर नियुक्ति हो भी चुकी है। आईआईटी के आने से वहां के छात्रों को विज्ञान एवं अभियांत्रिकी की शिक्षा के लिए स्थानीय स्तर पर ही बेहतर विकल्प उपलब्ध हुए हैं। एम्स के आ जाने से स्वास्थ्य-सेवा में आमूल-चूल सुधार की आशा जगी है। चिकित्सालयों में आधुनिक चिकित्सा-उपकरण लगने के अलावा डॉक्टरों की भी कमी को दूर करने के प्रयास में तेज़ी आई है।

सरकार की योजना पर्यटन को भी बड़े पैमाने पर बढ़ावा देने की है और शांति एवं सुव्यवस्था स्थापित करने के लिए सरकार द्वारा किए जा रहे सतत प्रयासों एवं सार्थक पहल के परिणाम स्वरूप निकट भविष्य में यह संभव होता भी दिखाई देता है। कश्मीर के डल झील में नौकायन हर किसी का सपना होता है। पर बहुत कम लोग जानते होंगें कि वहाँ का वुलर झील ताजे पानी के स्रोतों वाले झीलों के रूप में संपूर्ण एशिया में विख्यात है। पिछले एक वर्ष में केंद्र सरकार की पहल पर वहां बहुत काम हुआ है। सैकड़ों करोड़ रुपये वुलर झील को पुनर्जीवित करने के लिए आवंटित किए गए हैं और उसके पुनर्जीवन पर बहुत तीव्र गति से कार्य ज़ारी है।

गत वर्ष केंद्र सरकार द्वारा लिए गए इस ऐतिहासिक और साहसिक निर्णय ने अलगाववादी विचारधारा एवं आतंकी गतिविधियों पर प्रभावी अंकुश लगाने का कार्य किया है। गृह मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार 2019 की तुलना में 2020 में घाटी में आतंकी वारदातों में 36 प्रतिशत की कमी आई है। गत एक वर्ष से बड़ी आतंकी घटनाओं में आशाजनक कमी आई है। 2019 में जहाँ घाटी में 52 ग्रेनेड हमले और 6 आईआईडी अटैक हुए थे, वहीं 2020 में यह आँकड़ा घटकर क्रमशः इक्कीस और एक पर आया है। पहली बार जम्मू-कश्मीर में चार मुख्य आतंकी संगठनों- हिजबुल मुजाहिदीन, लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मुहम्मद और अंसर गजवत-उल-हिंद के टॉप कमांडर पिछले चार महीनों में मारेजा चुके हैं। मारे गए आतंकवादियों में स्थानीय से लेकर 50 खूँखार एवं ईनामी आतंकवादियों के नाम भी शामिल हैं।
गौरतलब है कि इन आतंकवादियों की गिरफ़्तारी या मारे जाने में सेना को स्थानीय प्रशासन एवं घाटी के आम नागरिकों का भी सहयोग प्राप्त होने लगा है, जो एक बड़ा सकारात्मक बदलाव है। पहले आतंकियों के जनाज़े पर भारी भीड़ जमा हो जाती थी, जो इन दिनों गुजरे ज़माने की बातें जैसी लगती है। बीते एक वर्ष में जम्मू-कश्मीर के नौ जिले आतंकवाद-मुक्त घोषित किए गए हैं। पत्थरबाजी की घटनाओं में भी उल्लेखनीय कमी देखने को मिली है। एक आँकड़े के अनुसार वहाँ होने वाली पत्थरबाजी में लगभग 73 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है। आतंकियों के मारे जाने या उनकी गिरफ़्तारी पर बुलाए जाने वाली हड़ताल-आंदोलन भी अब गाहे-बगाहे ही सुनने को मिलती हैं। सुरक्षा एजेंसियों और स्थानीय प्रशासन ने मिलकर अलगाववादियों एवं आतंकवादियों के वित्तीय स्रोत पर भी शिकंजा कसा है।

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