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किसानो ने दिल्ली में स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट लागू करने के लिए किया भाजपा सरकार के विरुद्ध जमकर प्रदर्शन

लखनऊ (सवांददाता) | दिल्ली के संसद भवन में जहाँ भाजपा के विरुद्ध आज अविश्वाश प्रस्ताव की नाकाम कोशिश चल रही थी वही किसान संगठनों ने सरकार के खिलाफ आज दिल्ली में जबरदस्त विरोध प्रदर्शन किया। किसानों ने सरकार से स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के हिसाब से न्यूनतम समर्थन मूल्य तय किये जाने की मांग की और कहा कि अगर सरकार ने उनकी मांगें नहीं मानी तो, अगले लोकसभा चुनाव में सरकार का ज़बरदस्त विरोध किया
जायेगा।
केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में प्रमुख फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में 50 फीसदी की बढ़ोतरी को किसानों ने अपने साथ धोखा बताया हैं |
आल इंडिया किसान संघर्ष कोऑर्डिनेशन कमेटी के बैनर तले सीपीआई और स्वराज इंडिया के साथ दर्जनों किसान संगठनों ने इस प्रदर्शन में भाग लिया। किसान नेताओं ने अपने प्रदर्शन को केंद्र सरकार के खिलाफ किसानों द्वारा लाया गया अविश्वास प्रस्ताव बताया।

सीपीआई नेता ने कहा कि संसद में सरकार के खिलाफ जो अविश्वास प्रस्ताव लाया गया है, उसे तो सरकार आसानी से पास कर लेगी लेकिन, किसानों के इस अविश्वास प्रस्ताव को सरकार कभी पास नहीं कर सकेगी। महाराष्ट्र में पिछले तीन वर्षों में 10 हजार किसानों की मौत का हवाला देते हुए अतुल अंजान ने कहा कि किसानों के कर्ज को माफ करने का ढोंग खुलकर सामने आ गया है क्योंकि अगर सरकार किसानों को कर्ज के बोझ से मुक्ति दिलाने में सफल होती तो आज किसान आत्महत्या नहीं कर रहा होता।

स्वराज इंडिया के अध्यक्ष योगेंद्र यादव ने कहा कि मोदी सरकार की हर नीति पूँजीपतियों के हिसाब से बनाई जा रही है। कृषि बीमा के नाम पर 300 करोड़ रुपये से अधिक की राशि किसानों से ले ली गयी जबकि किसानों को 100 करोड़ रुपये का भी भुगतान नहीं किया गया। इस तरह एक वर्ष में ही 200 करोड़ से अधिक का लाभ बीमा कम्पनियों को हो चुका है। इसलिए ये बात तय हो चुकी हैं कि मोदी सरकार किसानो कि नहीं बल्कि पूँजीपतियों कि सरकार बनकर रह गई हैं|
उन्होंने कहा कि लगातार किसानों के साथ किये जा रहे विश्वासघात के विरुद्ध वो सक्रिय हैं और इसके लिए वो मुहिम चला रहे हैं, और आने वाले चुनाव के पहले मोदी सरकार को बेनकाब करेंगे। उन्होंने कहा कि अगले चार महीने तक विभिन्न चरणों में सरकार के खिलाफ उनका प्रदर्शन जारी रहेगा।

किसानों को संबोधित करते हुए समाजसेवी मेधा पाटकर ने कहा कि इन सरकारों को पूरी ताकत किसानों के समर्थन से मिलती है, लेकिन ताकत मिलने के बाद वे उन्हीं किसानों का दमन करने लगते हैं। अब किसानों को अपनी ताकत इन सरकारों के खिलाफ दिखानी होगी।

यहाँ पर ये भी बताना जरुरी हैं कि स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट में का क्या ऐसा हैं जो सरकार अभी तक उसे पूरा नहीं करा सकी| दरसअल तमिलनाडु के प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन की अध्यक्षता में केंद्र सरकार ने 18 नवम्बर 2004 को राष्ट्रीय किसान आयोग का गठन किया था। वैज्ञानिक स्वामीनाथन के नाम पर यह स्वामीनाथन आयोग के नाम से विख्यात है। आयोग ने 2006 में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी थी जिसे तत्कालीन केंद्र सरकार ने 11 सितम्बर 2007 को स्वीकार कर लिया था। आयोग बनाने का उद्देश्य देश में कृषि और किसानों की स्थिति बेहतर करने के लिए उपाय सुझाना था। कहा जाता है कि अगर सरकार स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू कर देती तो इससे देश के किसान और कृषि के हालत बेहतर हो जाते।

स्वामीनाथन आयोग ने किसानों की आत्महत्याओं को रोकने के लिए उन्हें सी2 तकनीकी आकलन के आधार पर उनकी कृषि लागत से डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य दिए जाने की सिफारिश की थी। इस तकनीक में किसानों की खेती की जमीन का किराया भी शामिल करने की बात शामिल है। जबकि वर्तमान में सरकार जिस तकनीक पर न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करती हैं, उसमें उनकी कृषि लागत, उनके परिवार के द्वारा किये गए श्रम को आधार माना जाता है।

इसके अलावा आयोग ने कृषि भूमि का सुधार करने, बंजर जमीन को कृषि योग्य बनाकर खेतीविहीन कृषकों को देने की सिफारिश की थी। चूंकि प्रत्येक राज्य में कृषि भूमि, लागत और किसानों की स्थिति अलग-अलग होती है, इसलिए न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करने का अधिकार राज्यों को दिए जाने की बात कही गई थी।

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