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ईद-उल-अज़हा को शांति-पूर्वक संपन्न कराये जाने के लिए पुलिस ने उठाया सार्थक क़दम

 लखनऊ (सवांददाता) ईद-उल-अज़हा (बक़रीद) के त्योहार को शांति-पूर्वक संपन्न कराये जाने के लिए वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक कला निधि नैथानी के आदेश पर लखनऊ के विभिन्न अधिकारीयों, प्रभारी निरीक्षकों और थानाध्यक्षों ने आज अपने क्षेत्रों में स्थित मुसलमानों के ईदगाहों और मस्जिदों के धर्मगुरुओं और मुतवल्लियों से मुलाकात कर सुरक्षा-व्यवस्था पर विचार विमर्श किया और एक-दूसरे से उनके मोबाईल नंबर भी लिए गए, जिससे त्योहार के दरमियान एक दूसरे से सामंजस्य बना रहे और त्योहार शांति-पूर्वक सकुशल संपन्न कराया जा सके|

वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक कला निधि नैथानी के कार्यकाल में ये मुसलमानों का पहला त्योहार है, इसलिए उन्होंने इस तरह के आदेश देकर जहाँ पुराने रिवाज की पुनरावृत्ति की है वहीँ उन्होंने लखनऊ जैसे शहर में किसी भी तरह के हालात ख़राब न होने के लिए इस तरह की बैठकों का भी आयोजन कराया है जिसमे सभी धर्मों के गणमान्य व्यक्तियों ने शिरकत की और बक़रीद को शांति -पूर्वक संपन्न कराये जाने के लिए सभी ने अपने-अपने विचार रखे | इस त्योहार के मद्देनज़र थाना निगोहा, थाना हज़रतगंज, थाना चौक,थाना हुसेनगंज, थाना गाजीपुर, थाना मोहनलालगंज, थाना बाजारखाला, थाना सहादतगंज,थाना माल, थाना कैंट सहित लखनऊ भर में इस तरह की बैठकों का आयोजन कराया गया| इसके अलावा भी लखनऊ पुलिस ने आम लोगों से मिलकर उनको सौहार्द और शांति बनाये रखने के लिए जागरूक भी किया|

बताते चलें कि मुसलमानों का ये त्योहार बलिदान पर आधारित है, इसमें मुस्लिम विद्वानों का कहना है कि मेरे एक नबी ने सपने में देखा था कि वो अपने पुत्र को अल्लाह की राह में ज़िब्ह कर रहे है| वो ये सपना तीन दिन तक देखते रहे, जब उन्होंने इस सपने के बारे मे अपने पुत्र जो आगे चलकर खुद भी नबी हुए, बताया तो उन्होंने कहा कि आप अल्लाह की राह में मुझे ज़िब्ह कर दीजिये| ये सुनकर उन्होंने अपने बेटे को ज़मीन पर लिटाला और उनकी गर्दन पर अपनी आखों पर पट्टी बांधकर उनको ज़िब्ह कर दिया| लेकिन जब उन्होंने अपनी आखों से पट्टी हटाई तो देखा कि उनका बेटा ज़िंदा है और उनके बेटे की जगह दुम्बा ज़िब्ह हो चुका है|

ये देखकर नबी के चेहरे पर मुस्कराहट आई और उन्होंने अपने बेटे को गले से लगा लिया| इसी रिवाज़ पर क़ायम मुस्लमान आज भी ये त्योहार मनाता आ रहा है| इसी दिन निर्धन लोगो की सहायता हेतु फितरा भी निकला जाता है| इसके अलावा ज़िब्ह किये गए जानवर का गोश्त भी निर्धन लोगों को वितरित किये जाने का इस्लाम धर्म में प्राविधान है| ये अलग बात है की अधिकतर मुस्लिम निर्धन लोगों का ध्यान न रखते हुए अमीरों में गोश्त को वितरित करते है|

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